पति की इलेक्ट्रोक्यूशन से हत्या के मामले में पत्नी की सजा बरकरार: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पाया परिस्थितिजन्य साक्ष्य की कड़ी पूरी

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 29 जुलाई 2025 को दिए एक अहम फैसले में डॉ. नीरज पाठक की हत्या के मामले में उनकी पत्नी, श्रीमती ममता पाठक की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति देवनारायण मिश्रा की खंडपीठ ने श्रीमती पाठक द्वारा दायर आपराधिक अपील को खारिज कर दिया और यह निर्णय दिया कि अभियोजन पक्ष ने उनकी दोषसिद्धि के लिए आवश्यक सभी परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की कड़ी को सिद्ध कर दिया है।

मामला पृष्ठभूमि

यह मामला 1 मई 2021 को थाना सिविल लाइन, छतरपुर में दर्ज एक मर्ग सूचना से शुरू हुआ, जिसमें श्रीमती ममता पाठक ने अपने पति, सेवानिवृत्त मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. नीरज पाठक की मृत्यु की जानकारी दी थी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट (प्रद.पा./1) के अनुसार मृत्यु का कारण “कार्डियो-रेस्पिरेटरी फेल्योर के कारण हुआ झटका, जो शरीर के विभिन्न हिस्सों पर इलेक्ट्रिक करंट लगने से हुआ था” बताया गया।

मर्ग जांच के बाद पुलिस ने हत्या का मामला दर्ज किया। अभियोजन का आरोप था कि ममता पाठक ने पहले अपने पति को नींद की दवा (ओलैंज़ापाइन) दी और फिर उन्हें इलेक्ट्रिक करंट देकर मार डाला। जांच में नींद की गोलियां, एक इलेक्ट्रिक वायर और घर के सीसीटीवी फुटेज जब्त किए गए, जिनकी बरामदगी आरोपी के मेमोरण्डम के आधार पर हुई।

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अपीलकर्ता की दलीलें

वरिष्ठ अधिवक्ता श्री सुरेन्द्र सिंह की ओर से पेश अपीलकर्ता ने दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए कई बिंदुओं पर दलील दी:

  • प्रक्रियात्मक चूक: एफआईआर दर्ज करने में पांच दिन की देरी और इसे मजिस्ट्रेट को तत्काल न भेजे जाने को आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 157(1) का उल्लंघन बताया गया।
  • अस्वीकार्य मेमो: धारा 27 साक्ष्य अधिनियम के अंतर्गत दिया गया मेमो उस समय तैयार किया गया जब अपीलकर्ता पुलिस हिरासत में नहीं थी, इसलिए वह अस्वीकार्य है।
  • पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर संदेह: रिपोर्ट में मृतक का मुंह बंद होने की बात कही गई थी, जिसे चिकित्सा विज्ञान के अनुसार संभव नहीं बताया गया। इसके अलावा रिपोर्ट में बताई गई मृत्यु की समयावधि भी गर्मी के मौसम में शरीर में अपघटन की अवस्था से मेल नहीं खाती।
  • इलेक्ट्रोक्यूशन की असंभाव्यता: मृतक लकड़ी के पलंग पर और पैर प्लास्टिक की कुर्सी पर थे, जो विद्युत चालक नहीं हैं। इसके अलावा घर में MCB और RCCB जैसे सुरक्षा उपकरण लगे थे, जो शॉर्ट सर्किट में करंट को रोक देते हैं।
  • वैज्ञानिक परीक्षण की कमी: अभियोजन ने इलेक्ट्रिकल बर्न की पुष्टि के लिए स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी जैसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक परीक्षण नहीं कराए।
  • मनोदशा एवं संबंध: अभियोजन द्वारा अवैध संबंधों की बात को अप्रमाणिक बताते हुए यह तर्क दिया गया कि दंपती के संबंध अच्छे थे।
  • ‘अंतिम बार साथ देखा गया’ सिद्धांत: यह तर्क दिया गया कि ममता पाठक ने अपने पति को रात 10 बजे देखा था और उनका शव सुबह 8 बजे मिला, जिससे यह सिद्धांत लागू नहीं होता।
  • जांच में चूक: जैसे कि घटनास्थल का मानचित्र गलत था, बिस्तर की चादर जब्त नहीं की गई और जब्त वस्तुओं पर फिंगरप्रिंट की जांच नहीं हुई।
  • प्राकृतिक मृत्यु की संभावना: डॉ. पाठक की आयु 65 वर्ष थी और उन्हें पहले से हृदय रोग था; संभव है कि उनकी मृत्यु दिल का दौरा पड़ने या COVID-19 से हुई हो।
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राज्य की दलीलें

राज्य की ओर से शासकीय अधिवक्ता श्री मानस मणि वर्मा ने अभियोजन की दलीलों का जोरदार प्रतिवाद किया:

  • दवा की पुष्टि: एफएसएल रिपोर्ट (प्रद.पा./21) में मृतक की विसरा में ओलैंज़ापाइन की पुष्टि हुई, जो उन्हें बेहोश करने की योजना को सिद्ध करता है।
  • पूर्व आचरण और साक्ष्य: चंदीलाल बाजपेयी (साक्षी क्र.4) की गवाही महत्वपूर्ण रही, जिन्होंने बताया कि घटना के दिन मृतक ने उन्हें फोन कर बताया था कि उनकी पत्नी ने उन्हें बाथरूम में बंद कर मारा-पीटा और प्रताड़ित किया।
  • झांसी यात्रा एक बहाना: ममता पाठक ने 30 अप्रैल को डायलिसिस के बहाने झांसी की यात्रा की, लेकिन ड्राइवर रतन सिंह यादव (PW.12) की गवाही से सिद्ध हुआ कि कोई डायलिसिस नहीं हुआ था।
  • साक्ष्य की वैधता: अभियोजन ने बताया कि सभी जब्ती, इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य और रिकॉर्ड की गई बातचीत विधिसम्मत थी और न्यायालय में इन पर कोई आपत्ति नहीं उठाई गई।
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हाईकोर्ट का निर्णय

न्यायालय ने सभी बिंदुओं पर गहराई से विचार करते हुए अभियोजन के पक्ष में निर्णय दिया। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल द्वारा लिखे गए निर्णय में कहा गया:

  • एफआईआर में देरी: कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले Lalita Kumari बनाम उत्तर प्रदेश राज्य का हवाला देते हुए कहा कि पारिवारिक विवादों में प्रारंभिक जांच की अवधि 7 दिन तक हो सकती है।
  • मेमो की वैधता: न्यायालय ने कहा कि पुलिस हिरासत का अर्थ केवल औपचारिक गिरफ्तारी नहीं है; जैसे ही पुलिस अधिकारी किसी आरोपी को नियंत्रण में लेता है, वह हिरासत में माना जाता है।
  • पोस्टमार्टम रिपोर्ट: डॉक्टर से इन विरोधाभासों पर जिरह नहीं की गई, इसलिए इन आपत्तियों को अब स्वीकार नहीं किया जा सकता।
  • मनोदशा और आचरण: मृतक की यातना, मृत्यु की सूचना न देना, झूठा बहाना बनाना — सभी परिस्थितियाँ आरोपी के आपराधिक मनोभाव की पुष्टि करती हैं।
  • परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की श्रृंखला पूरी:
    • मृतक और आरोपी एक ही घर में रहते थे।
    • संबंध तनावपूर्ण थे और हत्या के दिन प्रताड़ना हुई थी।
    • आरोपी ने मृतक को अंतिम बार जीवित देखा था।
    • मृत्यु की परिस्थिति की स्पष्ट जानकारी देने में विफल रहीं।
    • झूठा बहाना बनाकर मृत्यु की रिपोर्ट में देरी की गई।
    • पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इलेक्ट्रोक्यूशन से मृत्यु की पुष्टि हुई।
    • विसरा में नींद की दवा की पुष्टि हुई।
    • बिजली का तार और दवा आरोपी के मेमो के अनुसार जब्त हुए।
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अंत में न्यायालय ने कहा:

“…यह केवल ममता पाठक थीं, जिन्होंने मृतक को पहले नशे की दवा दी और फिर करंट लगाकर उसकी हत्या कर दी। क्योंकि परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की श्रृंखला पूरी है, इसलिए ममता पाठक का दोष संदेह से परे सिद्ध होता है।”

अपील खारिज कर दी गई और आरोपी को शेष सजा काटने के लिए निचली अदालत में आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया गया।

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