अगर शत्रुतापूर्ण गवाह की गवाही चिकित्सकीय साक्ष्य से पुष्ट हो या विश्वसनीय लगे, तो उसे स्वीकार किया जा सकता है: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा द्वारा पारित एक निर्णय में, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने यह दोहराया कि यदि किसी शत्रुतापूर्ण गवाह की गवाही चिकित्सा या वैज्ञानिक साक्ष्य से पुष्ट होती है, या उसके कुछ अंशों पर भरोसा किया जा सकता है, तो उसे पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। अदालत ने एक नाबालिग लड़की से दुष्कर्म के मामले में आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए उसकी अपील खारिज कर दी, भले ही पीड़िता और उसके पिता ने न्यायालय में अभियोजन का समर्थन नहीं किया।

मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला वर्ष 2018 में जिला बालोद के ग्राम तालगांव का है, जहां आरोपी रमेश कुमार पर एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म कर उसे गर्भवती करने का आरोप था। पीड़िता ने 15 अगस्त 2018 को उपाध्याय नर्सिंग होम, धमतरी में सात माह के मृत शिशु को जन्म दिया। डॉक्टर रश्मि उपाध्याय द्वारा दर्ज शिकायत के आधार पर एफआईआर दर्ज की गई थी और आईपीसी की विभिन्न धाराओं तथा पॉक्सो अधिनियम की धारा 5(ठ)/6 के तहत मामला दर्ज हुआ।

READ ALSO  दिल्ली हाईकोर्ट ने स्वामी को यस बैंक द्वारा जेसी फ्लावर्स को तनाव संपत्ति पोर्टफोलियो के हस्तांतरण पर जांच की मांग वाली जनहित याचिका वापस लेने की अनुमति दी

विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो), बालोद ने आरोपी को पॉक्सो अधिनियम की धारा 3/4 के अंतर्गत दोषी ठहराया और सात वर्ष के कठोर कारावास तथा ₹5000 के जुर्माने की सजा सुनाई। इस फैसले को आरोपी ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

Video thumbnail

पक्षकारों की दलीलें
अपीलकर्ता की ओर से तर्क दिया गया कि पीड़िता और उसके पिता ने अदालत में अभियोजन का समर्थन नहीं किया, इसलिए दोषसिद्धि अवैध है। यह भी कहा गया कि पीड़िता की आयु का कोई ठोस प्रमाण नहीं है और स्वतंत्र गवाहों से आरोपों की पुष्टि नहीं होती।

राज्य पक्ष की ओर से प्रस्तुत किया गया कि अभियोजन ने वैज्ञानिक और चिकित्सकीय साक्ष्य के माध्यम से आरोप प्रमाणित किए हैं, विशेष रूप से डीएनए रिपोर्ट पर बल दिया गया।

READ ALSO  गुजरात हाई कोर्ट एडवोकेट्स एसोसिएशन ने मुख्य न्यायाधीश के तबादले की मांग की

अदालत के निष्कर्ष
अदालत ने स्कूल रजिस्टर (प्रदर्श 14(सी) और 32) में दर्ज जन्मतिथि के आधार पर यह स्पष्ट किया कि घटना के समय पीड़िता नाबालिग थी। पीड़िता और उसके पिता दोनों ने न्यायालय में अभियोजन का साथ नहीं दिया, परंतु अदालत ने स्पष्ट किया:

“सिर्फ इस आधार पर कि कोई गवाह शत्रुतापूर्ण घोषित कर दिया गया है, उसकी पूरी गवाही को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। यदि उसकी गवाही चिकित्सा साक्ष्य से पुष्ट हो या उसका कुछ हिस्सा विश्वसनीय प्रतीत हो, तो उसे स्वीकार किया जा सकता है।”

अदालत ने खुज्जी बनाम मध्यप्रदेश राज्य [(1991) 3 SCC 627] और सी. मुनियप्पन बनाम तमिलनाडु राज्य [(2010) 9 SCC 567] जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि शत्रुतापूर्ण गवाह की गवाही का वह भाग, जो अभियोजन के साथ मेल खाता हो और साक्ष्य से पुष्ट हो, स्वीकार्य है।

READ ALSO  ताज महल पर गलत ऐतिहासिक तथ्यों का दावा करने वाली याचिका: हाईकोर्ट ने ASI से प्रतिनिधित्व तय करने को कहा

इस मामले में डीएनए रिपोर्ट (प्रदर्श पी-35) यह स्पष्ट रूप से सिद्ध करती है कि मृत शिशु के जैविक माता-पिता पीड़िता और आरोपी ही हैं। यह वैज्ञानिक साक्ष्य घटना से आरोपी के सीधे संबंध को प्रमाणित करता है।

न्यायालय का निर्णय
अदालत ने कहा कि भले ही मुख्य गवाहों ने अदालत में अभियोजन का साथ नहीं दिया, अभियोजन ने चिकित्सकीय और वैज्ञानिक साक्ष्य के माध्यम से अपराध को संदेह से परे सिद्ध कर दिया है। विशेष न्यायाधीश (पॉक्सो) द्वारा पारित दोषसिद्धि और दंड को हाईकोर्ट ने सही ठहराया और आपराधिक अपील खारिज कर दी।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles