सुप्रीम कोर्ट ने एक वकील को कोई राहत देने से इनकार कर दिया, जिसकी वकालत की लाइसेंस तीन साल के लिए निलंबित कर दी गई थी। मामला एक मोटर वाहन दुर्घटना के मुआवज़े से जुड़ा है, जिसमें वकील ने 5 लाख रुपये की क्षतिपूर्ति पाने वाले मुवक्किल से 2.3 लाख रुपये फीस के रूप में मांग लिए थे। कोर्ट ने इस व्यवहार को ‘गंभीर कदाचार’ करार दिया और गरीब पीड़ितों के शोषण पर चिंता जताई।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पंजाब और हरियाणा बार काउंसिल द्वारा लगाए गए 5 साल के निलंबन को चुनौती दी गई थी। बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने बाद में इसे घटाकर 3 साल कर दिया, लेकिन याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया।
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने वकील के वकील से तीखे सवाल पूछे:

“आपने 5 लाख के दावे पर 2.3 लाख की फीस मांग दी? कैसे कर सकते हैं आप ऐसा? क्या फीस मुआवज़े से ज्यादा हो सकती है? यह तो खुद आपने बार काउंसिल में कहा है कि दावा मिलने पर ही आप फीस मांगेंगे… यह तो गंभीर कदाचार है! आपने बहन से उसके भाई का मुआवज़ा ठगने की कोशिश की है।”
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने जोड़ा,
“BCI पहले ही सजा को 3 साल कर चुका है।”
जब वकील के वकील ने सजा कम करने की अपील की और कहा कि इससे उसका करियर खत्म हो जाएगा, तब न्यायमूर्ति नाथ ने कहा:
“हमें नहीं पता आपने और कितनों को ऐसे ठगा होगा… यह पूरी तरह से अनुशासनहीनता है।”
यह भी तर्क दिया गया कि मांगी गई फीस में अन्य मामलों की फीस भी शामिल थी और यह केवल मुआवज़े से संबंधित नहीं थी, लेकिन कोर्ट इस स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं हुआ। याचिकाकर्ता की यह दलील भी कोर्ट ने खारिज कर दी कि उसे सुनवाई में मौजूद रहते हुए भी एकतरफा कार्यवाही में शामिल किया गया और जिरह का अवसर नहीं मिला।
मामला निपटाते हुए न्यायमूर्ति नाथ ने टिप्पणी की:
“वकीलों को अनुशासन की ट्रेनिंग लेनी चाहिए।”