दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर नेशनल कैपिटल रीजन (एनसीआर) में पुराने डीजल और पेट्रोल वाहनों पर लगाए गए पूर्ण प्रतिबंध की समीक्षा की मांग की है। सरकार का कहना है कि उम्र आधारित कठोर प्रतिबंधों की जगह वैज्ञानिक मानकों पर आधारित उत्सर्जन आधारित नीति लागू की जानी चाहिए।
भारत के प्रधान न्यायाधीश भूषण आर. गवई की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ 28 जुलाई को इस याचिका पर सुनवाई करेगी। यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के 29 अक्टूबर 2018 के उस आदेश को चुनौती देती है जिसमें राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के निर्देश को बरकरार रखते हुए 10 वर्ष से अधिक पुराने डीजल और 15 वर्ष से अधिक पुराने पेट्रोल वाहनों के संचालन पर रोक लगाई गई थी।
अपनी याचिका में दिल्ली सरकार ने केंद्र सरकार और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) से एक समग्र अध्ययन कराने की मांग की है ताकि यह आंका जा सके कि क्या आयु-आधारित प्रतिबंध उत्सर्जन आधारित वाहन फिटनेस नीति की तुलना में वास्तव में अधिक प्रभावी हैं।

सरकार ने तर्क दिया है कि वाहनों से होने वाला प्रदूषण उनके रखरखाव और उपयोग के तरीकों पर निर्भर करता है, इसलिए केवल उम्र के आधार पर लगाया गया प्रतिबंध प्रदूषण नियंत्रण में कारगर नहीं हो सकता। इसके बजाय, मानकीकृत परीक्षण विधियों के माध्यम से वाहनों के वास्तविक उत्सर्जन स्तर के आधार पर निर्णय लिया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले में एनसीआर राज्यों के परिवहन विभागों को एनजीटी के 26 नवंबर 2014 के आदेश को लागू करने का निर्देश दिया गया था, जिसमें डीजल वाहनों को 10 वर्ष और पेट्रोल वाहनों को 15 वर्ष से अधिक पुराने होने पर सड़कों पर चलने से मना किया गया था।
एनजीटी के आदेश में यह भी कहा गया था कि 15 वर्ष से अधिक पुराने वाहनों को सार्वजनिक स्थलों पर पार्क करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और ऐसे वाहनों को जब्त कर मोटर वाहन अधिनियम के तहत दंडित किया जाना चाहिए। यह आदेश दोपहिया, तिपहिया, चारपहिया, हल्के और भारी वाहनों, निजी और व्यावसायिक — सभी प्रकार के वाहनों पर लागू था।