सुप्रीम कोर्ट ने बेघर मानसिक रोगियों के पुनर्वास को ‘गंभीरता से लेने’ का निर्देश केंद्र को दिया

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मानसिक और सामाजिक अक्षमताओं (साइकोसोशल डिसएबिलिटी) से पीड़ित बेघर व्यक्तियों की दुर्दशा पर गहरी चिंता जताई और उनके पुनर्वास को “संवेदनशील मुद्दा” बताते हुए केंद्र सरकार को इसे अत्यधिक गंभीरता से लेने और शीघ्र कार्रवाई करने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मानसिक विकारों से पीड़ित बेघर व्यक्तियों के लिए एक समग्र पुनर्वास नीति बनाने और लागू करने का निर्देश मांगा गया था।

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने बताया कि इस विषय पर विचार-विमर्श चल रहा है और प्रगति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए आठ सप्ताह का समय मांगा। इस पर पीठ ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “इसे बहुत गंभीरता से लेना होगा और जितना कम समय लगे उतना बेहतर।”

READ ALSO  ज्ञानवापी विवाद: बेसमेंट की चाबी डीएम को सौंपने के मामले में जिला अदालत मंगलवार को सुनवाई करेगी

साइकोसोशल डिसएबिलिटी उन सामाजिक और मानसिक बाधाओं को दर्शाता है जिनका सामना मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे लोग करते हैं — जिनमें समाज की उपेक्षा, कलंक और सहयोग के अभाव जैसी चुनौतियाँ शामिल हैं।

अधिवक्ता बंसल ने कहा कि यह लोग “विभागों के बीच फुटबॉल बन गए हैं” और बिना किसी समुचित पुनर्वास व्यवस्था के पुलिस जैसे अधिकारियों से उपेक्षा और दुर्व्यवहार का सामना कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि महिलाएं विशेष रूप से इस स्थिति में अत्यधिक असुरक्षित हैं।

सरकार ने मामले में संक्षिप्त प्रतिउत्तर (काउंटर एफिडेविट) दाखिल किया है, जिस पर अदालत ने कहा कि केवल कानूनों की बात करना पर्याप्त नहीं है — “कानून तो हैं, लेकिन उन्हें लागू कौन कर रहा है? अनुपालन कहां है?” कोर्ट ने पूछा।

READ ALSO  कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 26 सितंबर को अगली सुनवाई तय की

याचिका में कहा गया है कि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 और राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति, 2014 जैसे कानूनों के बावजूद सरकारें बेघर मानसिक रोगियों के अधिकारों की रक्षा करने में विफल रही हैं। इसके कारण ऐसे लोग अक्सर उपेक्षा, अलगाव, और शारीरिक व यौन शोषण जैसी स्थितियों के शिकार होते हैं।

बंसल ने पुलिस और स्वास्थ्य विभाग जैसे संबंधित पक्षों के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOPs) बनाने की मांग की, ताकि मानसिक रूप से अस्वस्थ बेघर व्यक्तियों के साथ मानवीय और प्रभावी ढंग से व्यवहार किया जा सके।

READ ALSO  मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने सुप्रीम कोर्ट से इंडिया गेट तक वकीलों की वॉकाथन को किया रवाना

गंभीरता को स्वीकार करते हुए पीठ ने कहा, “हम सरकार से इन सभी मुद्दों पर जवाब की अपेक्षा कर रहे हैं। जब वे रिपोर्ट देंगे, तब हम निगरानी करेंगे और इसे तार्किक निष्कर्ष तक ले जाने की कोशिश करेंगे।”

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को निर्धारित की है।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles