NIA मामलों में विशेष अदालतें न बनाने पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को लगाई फटकार, कहा– मजबूरी में ज़मानत देनी पड़ेगी

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) अधिनियम और अन्य विशेष क़ानूनों के तहत मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें स्थापित न करने पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र और महाराष्ट्र सरकार को कड़ी फटकार लगाई। शीर्ष अदालत ने चेतावनी दी कि अगर समयबद्ध सुनवाई के लिए ज़रूरी ढांचा नहीं बनाया गया, तो न्यायालय को “मजबूरी में” अभियुक्तों को ज़मानत देनी पड़ेगी।

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ ने स्पष्ट कहा, “यदि समयबद्ध सुनवाई के लिए NIA एक्ट और अन्य विशेष क़ानूनों के तहत आवश्यक ढांचे और विशेष अदालतों की स्थापना नहीं होती है, तो अदालत को अभियुक्तों को ज़मानत देने के लिए विवश होना पड़ेगा।”

यह टिप्पणी उस समय आई जब अदालत महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में 2019 में हुए IED विस्फोट के मामले में आरोपी कैलाश रामचंदानी की ज़मानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस विस्फोट में राज्य पुलिस की त्वरित प्रतिक्रिया टीम के 15 जवान शहीद हुए थे। रामचंदानी को माओवादी समर्थक बताया गया है और वह 2019 से जेल में है। आरोप तय तक नहीं हुए हैं और सह-आरोपियों को ज़मानत मिल चुकी है।

Video thumbnail

सुप्रीम कोर्ट ने अपने 17 मार्च के उस पुराने आदेश को वापस ले लिया जिसमें रामचंदानी की ज़मानत याचिका खारिज की गई थी। अब अदालत ने स्पष्ट किया है कि अगर केंद्र और राज्य सरकार अगली सुनवाई तक विशेष अदालत की स्थापना करने में विफल रहती हैं, तो याचिका पर राहत दी जा सकती है।

READ ALSO  SC to Consider Setting Up Panel to Examine If Execution of Death Row Convicts by Hanging Proportionate

पीठ ने कहा, “अदालत केंद्र और राज्य सरकार को अंतिम अवसर दे रही है कि वे अदालत की टिप्पणियों के अनुसार निर्णय लें।” अब मामला चार सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया गया है।

केंद्र और महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल राजकुमार भास्कर ठाकरे ने दलील दी कि मुंबई में हाईकोर्ट की अनुमति से एक अदालत को NIA मामलों के लिए नामित किया गया है। इस पर कोर्ट ने नाराज़गी जताई और पूछा कि जब यह अदालत पहले से अन्य मामलों की सुनवाई कर रही थी, तो उसे कैसे “विशेष अदालत” बना दिया गया?

READ ALSO  हाईकोर्ट ने संपत्ति विवाद पर दर्ज एससी/एसटी एक्ट का मामला रद्द किया

पीठ ने कहा, “हमने जो निर्देश दिए थे, उनके विपरीत यह धारणा बना दी गई कि पहले से मौजूद अदालत को विशेष अदालत घोषित करना ही पर्याप्त है। हम इस दलील को सिरे से खारिज करते हैं।”

न्यायमूर्तियों ने कहा कि मौजूदा अदालतों को विशेष अदालत घोषित करना अन्य विचाराधीन कैदियों, वृद्धों और हाशिये के वर्गों के लिए अन्यायपूर्ण होगा, जो वर्षों से जेल में बंद हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से केवल “आश्वासन” नहीं बल्कि “कार्रवाई” की मांग की और साथ ही ट्राइब्यूनलों की स्थिति पर भी चिंता जताई जहां संवेदनशील मामलों के रिकॉर्ड सेवा प्रदाता कंपनियों द्वारा नियुक्त कर्मचारियों के हवाले हैं।

पीठ ने सवाल किया, “क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि हजारों करोड़ के मामलों के रिकॉर्ड आउटसोर्स किए गए कर्मचारियों के भरोसे छोड़े जाएं? अगर कुछ गलत हो गया तो ज़िम्मेदार कौन होगा?”

गौरतलब है कि 23 मई को भी सुप्रीम कोर्ट ने NIA मामलों के लिए समर्पित अदालतों की आवश्यकता पर ज़ोर दिया था और केंद्र व राज्यों द्वारा बनाए गए क़ानूनों का “न्यायिक ऑडिट” किए जाने की बात कही थी।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व सैन्य अधिकारी, प्रोफेसर को मणिपुर में उनके खिलाफ दर्ज दो एफआईआर में दंडात्मक कार्रवाई से बचाया

इससे पहले 9 मई को कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि विशेष क़ानूनों के तहत मामलों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें बनाना केंद्र और राज्यों की जिम्मेदारी है, और उनकी स्थिति स्पष्ट करने को कहा था।

सुप्रीम कोर्ट पहले ही यह संकेत दे चुका है कि अगर समय पर मुक़दमे पूरे नहीं होते, तो गंभीर आरोपों में फंसे आरोपी ज़मानत पर रिहा हो जाते हैं और न्याय प्रक्रिया कमजोर पड़ती है।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles