दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में आईटी कंपनी विप्रो लिमिटेड को निर्देश दिया है कि वह एक पूर्व कर्मचारी को ₹2 लाख का मुआवज़ा अदा करे, जिसे उसकी सेवा समाप्ति पत्र (टर्मिनेशन लेटर) में बदनामीपूर्ण टिप्पणियों के साथ बर्खास्त किया गया था।
न्यायमूर्ति पुरषेन्द्र कुमार कौरव ने 14 जुलाई को सुनाया गया फैसला देते हुए कहा कि टर्मिनेशन लेटर में कर्मचारी के पेशेवर आचरण पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों को हटाया जाए और कंपनी द्वारा एक नया सेवा समाप्ति पत्र जारी किया जाए जिसमें ऐसे शब्द न हों।
अदालत ने कहा, “टर्मिनेशन लेटर में प्रयुक्त कलंकपूर्ण भाषा, जो किसी ठोस आधार से रहित है, मानहानि योग्य है। ‘दुर्भावनापूर्ण आचरण’ जैसे शब्दों का उपयोग बिना किसी प्रमाण के किया गया है, जिससे वादी की भविष्य की रोजगार संभावनाओं और पेशेवर प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।”

न्यायालय ने यह भी कहा कि इस तरह की भाषा किसी प्रशासनिक औपचारिकता के बहाने “चरित्र हत्या” करने के इरादे को दर्शाती है, जो कर्मचारी की साख को और नुकसान पहुंचाती है।
पूर्व कर्मचारी द्वारा ₹2 करोड़ का मुआवज़ा मांगा गया था, परंतु अदालत ने ₹2 लाख मुआवज़ा यह कहते हुए दिया कि यह मानसिक पीड़ा, पेशेवर विश्वसनीयता की क्षति और प्रतिष्ठा को हुए नुकसान की भरपाई के लिए पर्याप्त है।
विप्रो की ओर से तर्क दिया गया कि कर्मचारी का रवैया उसके पेशेवर प्रदर्शन में सुधार की रुचि की कमी को दर्शाता है, जिसके चलते उसे हटाया गया। परंतु अदालत ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि कर्मचारी ने यह प्रमाणित कर दिया कि टर्मिनेशन लेटर की टिप्पणियों और कंपनी के आधिकारिक दस्तावेजों में लगातार मिले सकारात्मक फीडबैक के बीच स्पष्ट विरोधाभास है।
अदालत ने टिप्पणी की, “कानून ऐसे निराधार आरोपों से उत्पन्न हुई मानहानि को यूं ही बने रहने की अनुमति नहीं दे सकता, जो किसी व्यक्ति के करियर और भविष्य की संभावनाओं पर गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं।”