सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) से जुड़े वाणिज्यिक विवादों के निपटारे पर असर डालते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि सीमितता अधिनियम, 1963 का सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास (MSMED) अधिनियम, 2006 के तहत होने वाली मध्यस्थता (arbitration) की कार्यवाहियों पर लागू होना वैध है, लेकिन यही सीमितता अधिनियम सुलह (conciliation) की कार्यवाही पर लागू नहीं होता।
न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमाल्य बागची की पीठ ने यह फैसला सुनाया, जब उन्होंने M/s सोनाली पावर इक्विपमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर याचिका सहित कई अपीलों को आंशिक रूप से स्वीकार किया। याचिकाएं बॉम्बे हाईकोर्ट के 2023 के फैसले को चुनौती देती थीं।
पीठ ने कहा,
“हमने हाईकोर्ट के इस निर्णय को बरकरार रखा है कि MSMED अधिनियम के तहत मध्यस्थता कार्यवाहियों में सीमितता अधिनियम लागू होता है।”

हालांकि, न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि MSMED अधिनियम की धारा 18(2) के तहत होने वाली सुलह की प्रक्रिया पूरी तरह अलग प्रकृति की है। न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने अपने निर्णय में लिखा:
“सीमितता अधिनियम MSMED अधिनियम की धारा 18(2) के अंतर्गत होने वाली सुलह कार्यवाही पर लागू नहीं होता। यदि कोई दावा समयसीमा के बाहर हो गया हो, तब भी उसे सुलह के लिए भेजा जा सकता है, क्योंकि केवल सीमितता की अवधि समाप्त हो जाने से भुगतान की मांग करने का अधिकार समाप्त नहीं हो जाता, विशेषकर जब समझौते के जरिए निपटारा संभव हो।”
यह फैसला लंबे समय से चली आ रही उस अस्पष्टता को समाप्त करता है, जो सीमितता अधिनियम और MSMED अधिनियम के अंतर्गत विवाद निपटान तंत्र — विशेषकर सुलह और मध्यस्थता — के बीच संतुलन को लेकर बनी हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि सीमितता अधिनियम, MSMED अधिनियम या सर्वोच्च न्यायालय की किसी पूर्व व्यवस्था में ऐसा कोई निषेध नहीं है जो समयबद्ध ऋणों के संबंध में सुलह प्रक्रिया को रोकता हो।