केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के खिलाफ राज्य सरकार की 2023 की जनसंपर्क पहल ‘नव केरल सदा’ के दौरान हुई हिंसा की घटनाओं को लेकर दायर निजी शिकायत पर तीन महीने के लिए कार्यवाही पर रोक लगा दी।
यह अंतरिम राहत न्यायमूर्ति वी. जी. अरुण ने मुख्यमंत्री द्वारा दाखिल उस याचिका पर विचार करते हुए दी, जिसमें एर्नाकुलम के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा 3 जुलाई को दिए गए आदेश और शिकायत को रद्द करने की मांग की गई थी। उस आदेश में मजिस्ट्रेट ने कहा था कि मुख्यमंत्री के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है, लेकिन अभियोजन के लिए राज्यपाल की स्वीकृति आवश्यक है।
यह शिकायत एर्नाकुलम जिला कांग्रेस कमेटी (डीसीसी) के अध्यक्ष मुहम्मद शियास द्वारा दायर की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि मुख्यमंत्री ने अपनी जनसंपर्क यात्रा के दौरान दिए भाषण के जरिए राज्य भर में राजनीतिक हिंसा को उकसाया। शियास ने 30 नवंबर से 16 दिसंबर 2023 के बीच की तीन घटनाओं का हवाला दिया, जिनमें कर्नाटक स्टूडेंट्स यूनियन (केएसयू) और यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की युवा इकाई, डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीवाईएफआई) और मुख्यमंत्री के सुरक्षा कर्मियों द्वारा काली झंडा प्रदर्शन के दौरान हमला किया गया।

मुख्यमंत्री विजयन की याचिका में कहा गया कि उन्होंने 20 नवंबर 2023 को दिए गए भाषण में केवल उन राहगीरों की सराहना की थी, जिन्होंने प्रदर्शनकारियों को उनके काफिले के नीचे आने से रोका। यह भाषण न तो हिंसा का समर्थन करता था और न ही प्रतिशोध की कार्रवाई का। उन्होंने कहा कि उनके वक्तव्य को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया और उन्होंने न किसी को उकसाया और न ही किसी हिंसात्मक कार्रवाई में भागीदारी की।
हिंसा की घटनाओं में पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी, लेकिन मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई प्रत्यक्ष सबूत नहीं मिला। यहां तक कि जांच एजेंसी ने भी विजयन को क्लीन चिट देते हुए एक नकारात्मक रिपोर्ट दाखिल की थी। इसके बावजूद मजिस्ट्रेट ने उस रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री का भाषण प्रथम दृष्टया उकसावे की श्रेणी में आता है।
विजयन की याचिका में मजिस्ट्रेट के आदेश को “गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण” बताया गया और कहा गया कि यह अधिकार क्षेत्र से परे है तथा तथ्यों या साक्ष्यों पर आधारित नहीं है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि मजिस्ट्रेट ने प्राथमिकी में विरोधाभासों और परिस्थितियों की उचित जांच नहीं की।
मजिस्ट्रेट की अदालत में अगली सुनवाई 1 नवंबर को होनी थी, लेकिन हाईकोर्ट की रोक के बाद अब कार्यवाही आगामी समीक्षा तक स्थगित कर दी गई है।