मौत की सजा पाए आरोपी को सुप्रीम कोर्ट से बरी, DNA साक्ष्यों की हैंडलिंग पर देशव्यापी दिशा-निर्देश जारी

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक बलात्कार और हत्या के मामले में मौत की सजा पाए आरोपी को बरी कर दिया और साथ ही देशभर के लिए DNA साक्ष्यों के संग्रह, सुरक्षा और प्रस्तुति को लेकर अहम दिशा-निर्देश जारी किए। अदालत ने मामले में जांच को “त्रुटिपूर्ण” करार देते हुए कहा कि DNA साक्ष्यों के संग्रह में गंभीर खामियां थीं।

जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने 2019 में मद्रास हाईकोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा के खिलाफ आरोपी की अपील पर यह फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने आरोपी की मौत की सजा को बरकरार रखा था। आरोपी को मई 2011 में गिरफ्तार किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “अभियोजन द्वारा पेश की गई कोई भी परिस्थिति आरोपी के खिलाफ ठोस रूप से साबित नहीं हुई है। परिणामस्वरूप, आरोपी की दोषसिद्धि को रद्द किया जाता है। यदि वह किसी अन्य मामले में आवश्यक नहीं है, तो उसे तुरंत रिहा किया जाए। अपील स्वीकार की जाती है।”

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DNA साक्ष्यों पर सुप्रीम कोर्ट के नए दिशानिर्देश:

अदालत ने कहा कि भविष्य में किसी भी ऐसे मामले में जहां DNA साक्ष्य हों, निम्नलिखित मानक प्रक्रियाओं का पालन अनिवार्य होगा:

  • संग्रह की स्पष्ट डाक्यूमेंटेशन: DNA सैंपल लेने की प्रक्रिया का पूरा दस्तावेज़ तैयार किया जाए, जिस पर चिकित्सक, जांच अधिकारी और स्वतंत्र गवाहों के हस्ताक्षर व पदनाम हों। अगर स्वतंत्र गवाह उपलब्ध नहीं हो पाए, तो उनके लिए किए गए प्रयासों और अनुपलब्धता का स्पष्ट उल्लेख किया जाए।
  • 48 घंटे में प्रयोगशाला पहुंचाना अनिवार्य: जांच अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि सैंपल 48 घंटे के भीतर संबंधित फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला तक पहुंचे। अगर किसी कारण देरी हो, तो वह वजह केस डायरी में दर्ज की जाए।
  • प्रिजर्वेशन नियम: जब तक मुकदमा या अपील लंबित है, DNA सैंपल को बिना अदालत की स्पष्ट अनुमति के न तो खोला जाए, न ही उसमें कोई छेड़छाड़ या पुनः सीलिंग की जाए। अदालत यह अनुमति केवल किसी योग्य चिकित्सक की रिपोर्ट पर देगी, जिसमें यह कहा गया हो कि यह साक्ष्य की प्रमाणिकता पर नकारात्मक असर नहीं डालेगा।
  • चेन ऑफ कस्टडी रजिस्टर: DNA साक्ष्य के संग्रह से लेकर अंतिम परिणाम (दोषसिद्धि या बरी होने) तक उसकी हर गतिविधि का लेखा-जोखा एक रजिस्टर में रखा जाए, जिसमें प्रत्येक चरण पर हस्ताक्षर और कारण दर्ज हों। यह रजिस्टर ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड का हिस्सा होगा और किसी भी लापरवाही के लिए जांच अधिकारी जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
  • राज्य स्तर पर क्रियान्वयन: देशभर के सभी राज्यों के पुलिस महानिदेशकों (DGPs) को निर्देश दिया गया है कि वे आवश्यक दस्तावेजों और रजिस्टर के सैंपल तैयार कर सभी जिलों में भेजें और निर्देशों के साथ उसका पालन सुनिश्चित करें।
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वैज्ञानिक साक्ष्य के मानकीकरण की ओर कदम

इस ऐतिहासिक निर्णय को विशेषज्ञ न्यायिक व्यवस्था में वैज्ञानिक साक्ष्यों की भूमिका को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण बताया जा रहा है। एक वरिष्ठ आपराधिक वकील ने कहा, “यह फैसला फोरेंसिक साक्ष्यों की सुरक्षा और पारदर्शिता को लेकर एक निर्णायक बदलाव है।”

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