लीलावती अस्पताल से जुड़े एक कथित घोटाले में दर्ज प्राथमिकी को रद्द कराने की मांग को लेकर एचडीएफसी बैंक के सीईओ सशिधर जगदीशन द्वारा दायर याचिका पर आखिरकार सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई शुरू हुई। यह सुनवाई चार न्यायाधीशों के मामले से हटने के बाद संभव हो सकी।
न्यायमूर्ति मकरंद कर्णिक और न्यायमूर्ति एन.आर. बोरकर की खंडपीठ ने जगदीशन की याचिका पर सुनवाई की। इस दौरान पुलिस ने कोर्ट को बताया कि मामले की जांच अहम मोड़ पर है, लेकिन फिलहाल जगदीशन को कोई समन जारी नहीं किया जाएगा।
इसी बीच, लीलावती अस्पताल का प्रबंधन देखने वाला ‘लीलावती किरतिलाल मेहता मेडिकल ट्रस्ट’ भी एक अलग याचिका के जरिए मामले की जांच केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को सौंपे जाने की मांग कर रहा है। ट्रस्ट का आरोप है कि जगदीशन ने ₹2.05 करोड़ की रिश्वत ली ताकि पूर्व ट्रस्टियों, विशेष रूप से चेतन मेहता, को ट्रस्ट पर अवैध नियंत्रण बनाए रखने में मदद मिल सके।

यह प्राथमिकी 29 मई को एक मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश पर भारतीय दंड संहिता की धारा 406 (आपराधिक न्यासभंग), 409 (लोकसेवक द्वारा न्यासभंग) और 420 (धोखाधड़ी) के तहत दर्ज की गई थी। इसके बाद जगदीशन ने हाईकोर्ट का रुख किया और एफआईआर को आधारहीन और दुर्भावनापूर्ण बताते हुए रद्द करने की मांग की।
हालांकि, बीते एक महीने में चार अलग-अलग हाईकोर्ट जज इस मामले की सुनवाई से अलग हो चुके थे। पहली बार 18 जून को यह याचिका न्यायमूर्ति अजय गडकरी और न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की पीठ के समक्ष आई थी, लेकिन न्यायमूर्ति पाटिल ने सुनवाई से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति गडकरी ने कहा था, “मेरे भाई एचडीएफसी से जुड़े मामलों की सुनवाई नहीं करते।”
बाद में यह मामला न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल के समक्ष रखा गया, लेकिन उन्होंने भी बिना कोई कारण बताए खुद को अलग कर लिया। 26 जून को जब मामला न्यायमूर्ति एम.एस. सोनक और न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की पीठ के समक्ष आया, तब जस्टिस जैन ने बताया कि उनके पास एचडीएफसी बैंक के शेयर हैं। ट्रस्ट के वकील नितिन प्रधान ने इस पर आपत्ति जताई, जिसके बाद जस्टिस जैन ने भी खुद को सुनवाई से अलग कर लिया।
9 जुलाई को जब यह मामला न्यायमूर्ति रविंद्र घुगे और न्यायमूर्ति गौतम अंखड़ की पीठ के समक्ष आया, तब न्यायमूर्ति अंखड़ ने कोई कारण बताए बिना सुनवाई से अलग होने की घोषणा की।
इसके बाद जगदीशन ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया और कहा कि बॉम्बे हाईकोर्ट में उन्हें तीन सप्ताह तक सुनवाई का अवसर नहीं मिला, जिससे उनकी प्रतिष्ठा प्रभावित हो रही है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया कि मामला पहले से ही हाईकोर्ट में सूचीबद्ध है।
अब बॉम्बे हाईकोर्ट इस मामले की अगली सुनवाई 23 जुलाई को करेगा।