सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत चेक बाउंस की शिकायत को महज इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि जिसके पक्ष में चेक जारी किया गया था, वह साझेदारी फर्म (पार्टनरशिप फर्म) शिकायत में आरोपी के रूप में शामिल नहीं की गई थी।
जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि साझेदारों की जिम्मेदारी संयुक्त और व्यक्तिगत (joint and several) होती है, न कि प्रतिनिधिक (vicarious)। कोर्ट ने यह भी माना कि साझेदारों को भेजा गया नोटिस फर्म को भेजे गए नोटिस के रूप में माना जा सकता है।
मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला धनसिंह प्रभु (अपीलकर्ता) द्वारा चंद्रशेखर और ‘मौरिया कॉयर’ नामक फर्म के एक अन्य साझेदार (प्रतिवादी) के खिलाफ दायर शिकायत से शुरू हुआ। अपीलकर्ता ने व्यापार के लिए प्रतिवादियों को ₹21,00,000 का ऋण दिया था। इस ऋण के भुगतान के लिए प्रतिवादी संख्या 1 ने 1 फरवरी 2021 को फर्म के खाते से हस्ताक्षरित एक चेक जारी किया।
2 फरवरी 2021 को चेक प्रस्तुत करने पर बैंक ने बताया कि फर्म का खाता फ्रीज कर दिया गया है, जिससे चेक बाउंस हो गया। इसके बाद, अपीलकर्ता ने 1 मार्च 2021 को दोनों साझेदारों को व्यक्तिगत रूप से नोटिस भेजा, लेकिन फर्म को न तो नोटिस भेजा गया और न ही शिकायत (STC No. 1106/2022) में उसे आरोपी बनाया गया।
प्रतिवादियों ने धारा 482 दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के तहत मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर कर शिकायत रद्द कराने की मांग की, जिसे हाईकोर्ट ने 26 फरवरी 2024 को स्वीकार कर लिया। हाईकोर्ट ने माना कि फर्म को नोटिस न भेजना और आरोपी के रूप में न शामिल करना धारा 141 के तहत गंभीर दोष है, जिससे साझेदारों के खिलाफ शिकायत असंवैधानिक हो जाती है। अपीलकर्ता ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
पक्षकारों की दलीलें
अपीलकर्ता की ओर से दलील दी गई कि साझेदारी फर्म, कंपनी जैसी स्वतंत्र कानूनी इकाई नहीं होती, बल्कि केवल साझेदारों के लिए एक संक्षिप्त नाम (compendious name) होता है। साझेदारों की जिम्मेदारी असीमित, संयुक्त और व्यक्तिगत होती है, इसलिए फर्म को आरोपी बनाए बिना साझेदारों पर अभियोजन चलाना कानूनसंगत है।
वहीं, प्रतिवादियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री एस. नागमुथु ने दलील दी कि धारा 141 के स्पष्टीकरण में “फर्म” को “कंपनी” और “साझेदार” को “डायरेक्टर” के रूप में माना गया है, जिससे यह जरूरी हो जाता है कि फर्म को मुख्य आरोपी बनाया जाए और साझेदारों को केवल प्रतिनिधिक जिम्मेदारी के आधार पर ही अभियोजन में शामिल किया जा सकता है।
कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य प्रश्न तय किया कि क्या हाईकोर्ट का सिर्फ इस आधार पर शिकायत खारिज करना सही था कि शिकायत और नोटिस में साझेदारी फर्म का उल्लेख नहीं था।
कोर्ट ने साझेदारी फर्म और कंपनी के बीच बुनियादी कानूनी अंतर को रेखांकित किया। कोर्ट ने कहा कि “एनीता हड़ा बनाम गॉडफादर ट्रैवल्स एंड टूर्स (P) लिमिटेड” जैसे मामलों में जो निर्णय कंपनी के लिए लागू होते हैं, वे फर्मों पर लागू नहीं होते।
कुछ अहम टिप्पणियां:
- कानूनी व्यक्तित्व (Juristic Personality): कोर्ट ने कहा कि कंपनी एक स्वतंत्र कानूनी इकाई होती है, जबकि साझेदारी फर्म की कोई स्वतंत्र कानूनी पहचान नहीं होती।
- जिम्मेदारी की प्रकृति: कंपनी के निदेशकों की जिम्मेदारी प्रतिनिधिक होती है, जबकि साझेदारों की जिम्मेदारी संयुक्त और व्यक्तिगत होती है। कोर्ट ने कहा, “साझेदारी फर्म के मामले में साझेदारों की जिम्मेदारी प्रतिनिधिक नहीं होती, बल्कि फर्म के व्यवसाय के लिए वे खुद जिम्मेदार होते हैं।”
- धारा 141 की व्याख्या: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इसमें दी गई “कानूनी कल्पना” (legal fiction) केवल सुविधाजनक विधायी व्यवस्था के लिए है, इससे फर्म की मूल कानूनी प्रकृति नहीं बदलती।
कोर्ट ने माना कि “अगर साझेदारी फर्म को आरोपी के रूप में नामित नहीं भी किया गया है, तब भी साझेदारों के खिलाफ शिकायत बनाए रखी जा सकती है, क्योंकि वे फर्म के साथ-साथ आपस में भी संयुक्त और व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार होते हैं।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि साझेदारों को भेजा गया नोटिस, फर्म को भेजे गए नोटिस के रूप में गिना जा सकता है और यह एक ऐसा दोष नहीं है जिससे शिकायत खारिज की जाए।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए मद्रास हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया। STC No. 1106/2022 शिकायत को न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वितीय, पोल्लाची की अदालत में बहाल कर दिया गया। कोर्ट ने अपीलकर्ता को फर्म को भी आरोपी बनाने की अनुमति दी और निचली अदालत को कानून के अनुसार मामला निपटाने का निर्देश दिया।