एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत ने प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से जुड़ी 10 संपत्तियों की जब्ती को रद्द कर दिया है। अदालत ने यह फैसला प्रक्रियात्मक खामियों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन के आधार पर सुनाया।
विशेष एनआईए न्यायाधीश पी.के. मोहनदास ने 2022 में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत नामित प्राधिकरण द्वारा जारी जब्ती आदेशों को निरस्त कर दिया। इन आदेशों में संपत्तियों को “आतंकवाद से प्राप्त संपत्ति” बताया गया था। केंद्र सरकार ने सितंबर 2022 में पीएफआई को वैश्विक आतंकी नेटवर्कों से कथित संबंधों के चलते प्रतिबंधित कर दिया था।
संपत्ति मालिकों — जिनमें निजी व्यक्ति और ट्रस्ट शामिल थे — द्वारा दायर याचिकाओं पर अदालत ने 10 अलग-अलग आदेश जारी किए। इनमें से आठ मामलों में न्यायाधीश ने पाया कि संबंधित मालिकों के खिलाफ एनआईए द्वारा कोई मामला दर्ज नहीं था और उपलब्ध साक्ष्य यह साबित करने के लिए अपर्याप्त थे कि संपत्तियां आतंकवादी गतिविधियों से जुड़ी थीं।

अदालत ने कहा, “नामित प्राधिकरण द्वारा पारित आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन किए बिना पारित किया गया है और केवल इसी आधार पर रद्द किए जाने योग्य है।” अदालत ने यह भी कहा कि इन आठ मामलों में जब्त की गई इमारतें यूएपीए के तहत “आतंकवाद की आय” की परिभाषा में नहीं आतीं।
शेष दो मामलों — मलप्पुरम स्थित ग्रीन वैली फाउंडेशन ट्रस्ट और कोल्लम स्थित करुण्य फाउंडेशन — में अदालत ने माना कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री से प्रथम दृष्टया आतंकवाद से प्राप्त संपत्ति होने का संकेत मिलता है। बावजूद इसके, अदालत ने इन मामलों में भी आदेश रद्द कर दिए, यह कहते हुए कि प्रभावित पक्षों को उचित रूप से सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया।
अदालत ने जोर देकर कहा कि नामित प्राधिकरण ने किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का समुचित अनुपालन नहीं किया।
यह फैसला एनआईए द्वारा पीएफआई से कथित रूप से जुड़ी संपत्तियों को जब्त करने के प्रयासों के लिए एक झटका माना जा रहा है। एनआईए की ओर से अभी तक यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि वह इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती देगी या नहीं।