कर्नाटक हाईकोर्ट ने सीबीएसई, सीआईएससीई स्कूलों में अनिवार्य कन्नड़ शिक्षा को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर राज्य से मांगा जवाब

कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह सीबीएसई और सीआईएससीई से संबद्ध स्कूलों में कन्नड़ भाषा की अनिवार्य शिक्षा को चुनौती देने वाली जनहित याचिका (PIL) पर तीन सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करे।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश वी. कामेश्वर राव और न्यायमूर्ति सी. एम. जोशी की खंडपीठ ने 2023 में सोमशेखर सी और अन्य अभिभावकों द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया। याचिकाकर्ताओं के बच्चे राज्य शिक्षा बोर्ड से संबद्ध नहीं हैं। इस याचिका में कन्नड़ भाषा अधिनियम, 2015; कन्नड़ भाषा नियम, 2017; और कर्नाटक शैक्षणिक संस्थान (अनापत्ति प्रमाणपत्र और नियंत्रण) नियम, 2022 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।

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याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि ये विधिक प्रावधान सभी स्कूलों पर—उनके बोर्ड से संबंध की परवाह किए बिना—कन्नड़ पढ़ाना अनिवार्य करते हैं, जो छात्रों के मौलिक अधिकारों, विशेष रूप से भाषा चुनने की स्वतंत्रता का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी चिंता जताई कि इससे अन्य भाषाओं के शिक्षकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और छात्रों की शैक्षणिक प्रगति व करियर संभावनाओं पर नकारात्मक असर हो सकता है।

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शुक्रवार को सुनवाई के दौरान पीठ ने राज्य सरकार की निष्क्रियता पर नाराजगी जताते हुए कहा, “दो साल हो गए हैं, आपने कुछ नहीं किया। अपनी मशीनरी सक्रिय कीजिए, नहीं तो हमें अंतरिम राहत देने पर विचार करना पड़ेगा।”

याचिकाकर्ताओं ने याचिका में मांग की है कि NOC नियमों के नियम 6(1) को असंवैधानिक घोषित किया जाए, या वैकल्पिक रूप से नियम 6(2) को निरस्त किया जाए और सीबीएसई व सीआईएससीई स्कूलों को इन प्रावधानों से छूट दी जाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी आपत्ति कन्नड़ भाषा के खिलाफ नहीं है, बल्कि उसके जबरन थोपे जाने के खिलाफ है।

याचिका में पहले के एक कर्नाटक हाईकोर्ट आदेश का भी हवाला दिया गया है, जिसमें राज्य सरकार द्वारा स्नातक पाठ्यक्रमों में कन्नड़ अनिवार्य करने के प्रयास पर रोक लगाई गई थी। इसके साथ ही यह भी कहा गया है कि नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 में किसी भी भाषा को जबरन थोपने की बात नहीं कही गई है, जिसे केंद्र सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है।

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हालांकि याचिकाकर्ताओं ने नियमों के क्रियान्वयन पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की थी, अदालत ने इस स्तर पर राहत देने से इनकार करते हुए अगली कार्यवाही को राज्य सरकार के जवाब दाखिल करने तक स्थगित कर दिया।

अब यह मामला राज्य सरकार द्वारा निर्धारित समयसीमा में आपत्तियाँ दाखिल करने के बाद आगे बढ़ेगा।

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