पति की आत्महत्या मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने आरोपितों की बरी करने के आदेश को बरकरार रखा, उकसावे के साक्ष्य न मिलने का हवाला

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति की आत्महत्या के मामले में उसकी पत्नी और उसके परिजनों को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप से बरी करने के ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है। अदालत ने कहा कि न तो सुसाइड नोट और न ही गवाहियों से यह साबित होता है कि आत्महत्या से पहले किसी तरह का सीधा या कानूनी रूप से आपराधिक उकसावा हुआ हो।

न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने यह फैसला 10 जुलाई को सुनाया। यह फैसला मृतक विजय सिंह के माता-पिता की उस अपील को खारिज करते हुए आया, जिसमें उन्होंने ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। ट्रायल कोर्ट ने मृतक की पत्नी उर्मिला और उसके चार भाइयों को बरी कर दिया था।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में 9 अपर न्यायाधीशों को स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की संस्तुति की

विजय सिंह की शादी उर्मिला से अप्रैल 2008 में हुई थी और मई 2010 में उसने आत्महत्या कर ली थी। मृतक के माता-पिता का आरोप था कि उनकी बहू और उसके परिजन उसे दहेज के झूठे मामले में फंसाने की धमकी देकर मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहे थे, जिससे विवश होकर उसने अपनी जान दी। घटना के अगले दिन मृतक के पिता ने एक सुसाइड नोट पुलिस को सौंपा था।

Video thumbnail

हालांकि, हाई कोर्ट ने कहा कि सुसाइड नोट में किसी स्पष्ट घटना या तत्काल उकसावे का उल्लेख नहीं है। अदालत ने कहा, “सुसाइड नोट में कोई ऐसी परिस्थिति नहीं दर्शाई गई है जिसे आत्महत्या के लिए उकसाने जैसा माना जा सके, और न ही इसमें आत्महत्या के लिए कोई निकटवर्ती कारण बताया गया है।”

न्यायमूर्ति कृष्णा ने यह भी कहा कि विवाह में असंतोष या निराशा जैसी सामान्य शिकायतें, जब तक वे स्पष्ट और ठोस साक्ष्य के साथ पेश न हों, तब तक उन्हें आपराधिक उकसावे की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। “यह हो सकता है कि मृतक अपनी शादी से दुखी और निराश था, लेकिन सुसाइड नोट या उसके माता-पिता की गवाही से किसी तरह के उकसावे का प्रमाण नहीं मिलता,” उन्होंने कहा।

READ ALSO  नसबंदी के बाद भी गर्भवती हुई महिला- कोर्ट ने दिया मुआवजे का आदेश

अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि पत्नी द्वारा खुद भी आत्महत्या की कोशिश करना—जैसे तेज़ाब पीना या आत्मदाह की कोशिश—दर्शाता है कि वह भी वैवाहिक जीवन में कठिनाइयों से गुजर रही थी। इससे यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि पति की मानसिक स्थिति के लिए वह अकेली जिम्मेदार थी।

फैसले में कहा गया कि अस्पष्ट आरोप, बिना किसी ठोस तारीख या घटना के, कानूनी रूप से आत्महत्या के लिए उकसावे का अपराध सिद्ध नहीं कर सकते। ट्रायल कोर्ट की दलीलों को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने अपील को खारिज कर दिया और सभी पांचों आरोपियों की बरी को बरकरार रखा।

READ ALSO  Delhi HC Seeks Centre’s Stand on Plea Against Mandatory Reporting of POCSO Offences
Ad 20- WhatsApp Banner

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles