ऑनलाइन सामग्री नियंत्रण को लेकर चल रही कानूनी बहस में एक अहम मोड़ तब आया जब एक्स कॉर्प (पूर्व में ट्विटर) ने मंगलवार को कर्नाटक हाईकोर्ट को बताया कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की धारा 79 के मौजूदा उपयोग से सरकारी अधिकारियों को बिना किसी संस्थागत निगरानी के सामग्री हटाने का अधिकार मिल गया है, जो गंभीर संवैधानिक प्रश्न खड़े करता है।
न्यायमूर्ति एन नागप्रसन्ना की अदालत में पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता के.जी. राघवन ने कहा कि जहां आईटी एक्ट की धारा 69A के तहत समिति के जरिए विचारपूर्वक निर्णय लेना आवश्यक है, वहीं धारा 79 के अंतर्गत हजारों अधिकारी विभिन्न क्षेत्रों में अपनी व्यक्तिगत व्याख्या के आधार पर “अवैध” या “अनैतिक” मानी जाने वाली सामग्री को ब्लॉक करने का आदेश दे सकते हैं।
राघवन ने तर्क दिया, “धारा 79 में संस्थागत सुरक्षा का अभाव है और यह मनमानी और असंगत प्रवर्तन की स्थिति पैदा करती है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।” उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसे निरंकुश कार्यपालिका अधिकार कानून को मनमाने सेंसरशिप का उपकरण बना सकते हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि सरकार द्वारा अक्सर सामग्री हटाने के लिए उद्धृत की जाने वाली धारा 79(3)(b) स्वतंत्र रूप से ब्लॉकिंग का स्रोत नहीं हो सकती और यदि इसे स्वीकार भी किया जाए, तो इसे प्रक्रिया-संपन्न धारा 69A के साथ मिलाकर पढ़ा जाना चाहिए।
“क्या कोई सरकारी अधिकारी अपने कार्यालय से बिना किसी निगरानी के ब्लॉकिंग आदेश पारित कर सकता है? यह वैधता को सिर्फ एक निजी राय पर आधारित कर देता है — ‘मैं कहूं, इसलिए यह सही है’,” उन्होंने कहा, और वर्तमान प्रणाली को अपारदर्शी और कानूनी रूप से अस्थिर बताया।
उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि ऑनलाइन सामग्री की सांस्कृतिक और क्षेत्रीय व्याख्याएं अलग-अलग हो सकती हैं — जो एक क्षेत्र में आपत्तिजनक मानी जाती है, वह दूसरे में स्वीकार्य हो सकती है। इसलिए एक पारदर्शी और मानकीकृत प्रक्रिया जरूरी है।
एक्स कॉर्प ने स्पष्ट किया कि वह भारतीय कानून से छूट नहीं मांग रहा है। “हम कानून से ऊपर नहीं हैं, हम सिर्फ प्रक्रिया में न्याय चाहते हैं। धारा 79 के वर्तमान अनुप्रयोग से हमें नागरिक और आपराधिक दंड का सामना करना पड़ रहा है,” राघवन ने कहा और आईटी एक्ट की धारा 45 का हवाला दिया।
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का भी जिक्र किया जिसमें कहा गया है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मानदंड डिजिटल प्लेटफॉर्म समेत सभी माध्यमों पर समान रूप से लागू होते हैं। जब अदालत ने कहा कि वह फैसला 2021 के आईटी नियमों से पहले का है, तो राघवन ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस निर्णय का हवाला दिया जिसमें 2023 संशोधनों के कुछ हिस्सों — खासतौर पर फैक्ट चेक यूनिट के प्रावधान — को कानूनी सुरक्षा के उल्लंघन के आधार पर खारिज कर दिया गया था।
राघवन ने 2021 आईटी नियमों के नियम 3(1)(d) को भी चुनौती दी, जिसमें मध्यस्थों (इंटरमीडियरी) से सरकारी आदेश पर सामग्री हटाने की बात कही गई है, लेकिन इसमें पर्याप्त नियंत्रण और संतुलन का अभाव है और यह शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को कमजोर करता है।
उन्होंने माना कि एक्स कॉर्प एक विदेशी इकाई होने के कारण अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का दावा नहीं कर सकती, लेकिन अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) सभी पर समान रूप से लागू होता है। कोई भी कानून जो अनुच्छेद 14 की प्रक्रिया संबंधी न्याय की कसौटी पर खरा नहीं उतरता, असंवैधानिक होता है।
सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक्स कॉर्प की दलीलों को “एक्स-केंद्रित” करार देते हुए कहा कि इसमें शिकायतकर्ता के अधिकारों और प्लेटफॉर्म के सार्वजनिक प्रभाव की अनदेखी की गई है। “अगर कोई मानहानिपूर्ण सामग्री पोस्ट होती है और इंटरमीडियरी कार्रवाई नहीं करता, तो पीड़ित के पास कोई तत्काल उपाय नहीं होता। जैसे अखबार जिम्मेदार ठहराए जाते हैं, वैसे ही इंटरमीडियरी को भी जवाबदेह होना चाहिए,” मेहता ने कहा।
पूरा दिन चली सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने अगली सुनवाई 11 जुलाई को तय की है। केंद्र सरकार को 17 जुलाई को अपना विस्तृत जवाब दाखिल करना है।