इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ग्राम प्रधान पर वकील को झूठे एससी/एसटी एक्ट के मुकदमे में फंसाने की धमकी देने और वकालत पेशे के विरुद्ध अपमानजनक भाषा का प्रयोग करने को लेकर ₹25,000 का जुर्माना लगाया है।
यह मामला जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान सामने आया, जिसमें वादी पक्ष के अधिवक्ता श्री वसीम अख्तर को ग्राम प्रधान (प्रतिवादी संख्या 6 – जंग बहादुर) द्वारा फोन पर अपमानजनक शब्द कहे गए और झूठे मुकदमे की धमकी दी गई थी। इस बातचीत की ट्रांसक्रिप्ट न्यायालय को रजिस्ट्रार जनरल की अनुमति से प्रस्तुत की गई।
न्यायालय ने बातचीत की रिकॉर्डिंग का अवलोकन करते हुए पाया कि प्रतिवादी ने न केवल अधिवक्ता के प्रति व्यक्तिगत रूप से आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया, बल्कि समस्त विधिक पेशे को अपमानित करने वाले शब्दों का प्रयोग किया। न्यायमूर्ति जे.जे. मुनीर ने टिप्पणी की:

“विधिक पेशे के बारे में अपमानजनक शब्द कहना केवल पेशे को ही नहीं, बल्कि समस्त न्याय व्यवस्था को प्रभावित करता है, जिसका अभिन्न अंग बार है।”
न्यायालय ने यह भी कहा:
“जब एक आम नागरिक, जो विपक्षी पक्ष का वादी है, किसी अधिवक्ता को टेलीफोन पर गाली देता है, तो यह एक अत्यंत गंभीर विषय है, जो हमारे विचार में आपराधिक अवमानना की सीमा तक पहुँचता है।”
हालांकि, न्यायालय ने प्रतिवादी द्वारा बिना शर्त खेद व्यक्त करने और भविष्य में ऐसा व्यवहार न दोहराने का आश्वासन दिए जाने को ध्यान में रखते हुए आपराधिक अवमानना की कार्यवाही न करने का निर्णय लिया। न्यायालय ने कहा कि न्याय के हित में यह उचित होगा कि प्रतिवादी को भविष्य के लिए कड़ी चेतावनी दी जाए और ₹25,000 का जुर्माना लगाया जाए।
यह जुर्माना निम्न प्रकार से जमा किया जाएगा: ₹10,000 अधिवक्ता श्री वसीम अख्तर को और ₹15,000 राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के खाते में। न्यायालय ने निर्देश दिया कि यह राशि 15 दिनों के भीतर जमा की जाए, अन्यथा इसे प्रयागराज के जिलाधिकारी द्वारा भूमि राजस्व के बकाये की तरह वसूल किया जाएगा।
साथ ही, न्यायालय ने प्रतिवादी की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दी और जिस मोबाइल फोन में बातचीत रिकॉर्ड थी, उसे सीलबंद लिफाफे में वापस रजिस्ट्रार जनरल को सौंपने का निर्देश दिया, जो आगे अधिवक्ता वसीम अख्तर को सुपुर्द करेंगे।
मामला: जनहित याचिका संख्या 538 वर्ष 2025 – बनो बीबी बनाम राज्य उत्तर प्रदेश व अन्य