पटना हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि किसी महिला को केवल आरोप या एक-दो घटनाओं के आधार पर “व्यभिचार में रहना” नहीं कहा जा सकता। अदालत ने कहा कि निरंतर अनैतिक आचरण का स्पष्ट प्रमाण न हो तो पत्नी को भरण-पोषण देने से इनकार नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति जितेन्द्र कुमार की एकल पीठ ने यह फैसला 7 जुलाई 2025 को पारित किया, जिसमें फैमिली कोर्ट, पूर्णिया के 4 अप्रैल 2020 के आदेश को आंशिक रूप से रद्द कर दिया गया। फैमिली कोर्ट ने याचिकाकर्ता के नाबालिग पुत्र को ₹4,000 मासिक भरण-पोषण देने का आदेश दिया था, लेकिन महिला को यह लाभ यह कहते हुए नहीं दिया गया था कि वह “व्यभिचार में रह रही है।”
पृष्ठभूमि
प्रकरण दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत दायर किया गया था, जिसमें याचिकाकर्ता ने स्वयं और अपने नाबालिग पुत्र के लिए ₹20,000 प्रतिमाह भरण-पोषण की मांग की थी। विवाह वर्ष 2013 में हुआ और बच्चा 2014 में पैदा हुआ। महिला ने आरोप लगाया कि गर्भावस्था के दौरान पति और उसके परिजनों ने प्रताड़ित किया और अतिरिक्त दहेज की मांग की। दहेज नहीं मिलने पर उसे नवजात के साथ घर से निकाल दिया गया और बाद में पति ने दूसरी शादी कर ली।

विपक्षी पक्ष ने विवाह और पितृत्व को स्वीकार किया लेकिन यह आरोप लगाया कि महिला का अन्य पुरुष के साथ अवैध संबंध था और वह स्वेच्छा से घर छोड़कर चली गई। उसने ‘तलाक’ का प्रमाण पत्र भी पेश किया।
अदालत की प्रमुख टिप्पणियाँ
न्यायालय ने “व्यभिचार में रहना” की परिभाषा स्पष्ट करते हुए कहा:
“‘व्यभिचार में रहना’ और ‘व्यभिचार करना’ दोनों अलग-अलग बातें हैं। ‘व्यभिचार में रहना’ का तात्पर्य है एक सतत आचरण, न कि कभी-कभार अनैतिक व्यवहार। सदाचार से एक या दो विचलन, भले ही वे व्यभिचार हों, यह दिखाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं कि महिला ‘व्यभिचार में रह रही है।’”
इसके अतिरिक्त न्यायालय ने कहा:
“रिकॉर्ड पर ऐसा कोई ठोस साक्ष्य नहीं है जिससे यह सिद्ध हो कि वह [महिला] [आरोपित व्यक्ति] के साथ रह रही है, और न ही कोई ऐसा प्रत्यक्षदर्शी है जिसने उनके व्यभिचारी जीवन को देखा हो… विपक्ष की ओर से प्रस्तुत किसी भी गवाह ने इस कथित व्यभिचार के दिन, समय और स्थान का उल्लेख नहीं किया है।”
फैसले में यह भी कहा गया:
“अतः, फैमिली कोर्ट का यह निष्कर्ष कि महिला व्यभिचार में रह रही है, किसी ठोस साक्ष्य पर आधारित नहीं है बल्कि साक्ष्यों की विकृत सराहना है और विधिसम्मत नहीं है।”
तलाक की वैधता पर विचार
विपक्षी ने दावा किया कि उसने तीन तलाक के जरिए विवाह समाप्त कर दिया था। इस पर हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया:
“तीन तलाक Shayara Bano मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अवैध और मनमाना घोषित किया जा चुका है। मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 के अनुसार भी यह शून्य और अवैध है।”
“ऐसा कोई दावा नहीं किया गया है कि पति ने इद्दत अवधि के दौरान पत्नी को एक पैसा भी दिया हो, और न ही उसके जीवन के लिए कोई प्रावधान किया गया हो।”
अतः महिला को विधिक रूप से तलाकशुदा नहीं माना गया और वह भरण-पोषण की हकदार मानी गई।
भरण-पोषण पर आदेश
न्यायालय ने कहा:
“[महिला] को अपने पति से भरण-पोषण पाने का अधिकार है क्योंकि उसके पास स्वयं का कोई साधन नहीं है और [पति] एक सक्षम पुरुष है जो मजदूरी करता है।”
साथ ही Rajnesh v. Neha (2021) के निर्णय का हवाला देते हुए कहा:
“न्याय और निष्पक्षता के हित में, भरण-पोषण की राशि आवेदन की तिथि से देय होनी चाहिए, क्योंकि मुकदमे की लंबी प्रक्रिया याचिकाकर्ता के नियंत्रण में नहीं होती।”
न्यायालय ने महिला को ₹2,000 प्रतिमाह और पुत्र को पूर्व के आदेश के अनुसार ₹4,000 प्रतिमाह भरण-पोषण की राशि देने का निर्देश दिया, जो कि आवेदन की तिथि से देय होगी।