दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को छात्र कार्यकर्ता देवांगना कलीता द्वारा दायर उस याचिका पर आदेश सुरक्षित रख लिया, जिसमें उन्होंने पूर्वोत्तर दिल्ली में 2020 में हुए दंगों से जुड़े एक मामले में केस डायरी को सुरक्षित रखने और उसका पुनर्निर्माण करने की मांग की थी।
न्यायमूर्ति रविंदर दुडेजा ने कलीता और दिल्ली पुलिस की ओर से रखे गए विस्तृत तर्कों को सुनने के बाद कहा, “दलीलें सुनी गईं। आदेश सुरक्षित रखा गया।”
कलीता ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी है, जिसमें जाफराबाद थाना में दर्ज एफआईआर की केस डायरी को तलब करने की उनकी मांग को खारिज कर दिया गया था। उनके वकील ने आरोप लगाया कि जांच एजेंसी ने चार्ज तय करने के चरण पर डायरी में “पिछली तारीख” (antedated) के बयान जोड़ दिए, जिनमें कलीता पर पुलिस के साथ “धक्का-मुक्की” में शामिल होने का आरोप लगाया गया।

याचिका में कहा गया है कि ये कथित बयान मूल रिकॉर्ड का हिस्सा नहीं थे और पहले कभी प्रस्तुत भी नहीं किए गए, इसलिए पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए केस डायरी को संरक्षित करना और उसका पुनर्निर्माण आवश्यक है।
दिल्ली पुलिस ने इस याचिका का विरोध करते हुए कहा कि इस चरण पर केस डायरी को तलब करना कार्यवाही में अनावश्यक विलंब पैदा करेगा। ट्रायल कोर्ट ने पहले ही यह कहा था कि वह कलीता की संदेहात्मक बातों की सत्यता की जांच नहीं कर सकता और उन्हें सलाह दी थी कि वे यह मुद्दा मुकदमे की उपयुक्त अवस्था पर उठाएं।
यह मामला फरवरी 2020 में पूर्वोत्तर दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े कई मामलों में से एक है, जिसमें कम से कम 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से अधिक लोग घायल हुए थे।
हाई कोर्ट का यह फैसला, जब भी आएगा, दंगों से जुड़े मामलों में केस दस्तावेजों की प्रक्रियात्मक पारदर्शिता को लेकर एक अहम दृष्टिकोण निर्धारित कर सकता है।