विकलांगता पेंशन कोई दान नहीं, बलिदान की मान्यता का अधिकार है: दिल्ली हाईकोर्ट ने रक्षा मंत्रालय की 200 से अधिक याचिकाएं खारिज कीं

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में रक्षा मंत्रालय (MoD) द्वारा दायर 200 से अधिक याचिकाओं को खारिज कर दिया है, जो सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) द्वारा कई सैनिकों को विकलांगता पेंशन देने के आदेश को चुनौती दे रही थीं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विकलांगता पेंशन कोई दया या कृपा का कार्य नहीं, बल्कि सैनिकों के बलिदान की मान्यता में उनका वैधानिक अधिकार है।

न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर की खंडपीठ ने कहा कि किसी विकलांगता को “पीस स्टेशन” पर होने या फिर उसे “लाइफस्टाइल डिजीज” — जैसे हाई ब्लड प्रेशर या टाइप-II डायबिटीज — बताकर पेंशन न देना, विधिक रूप से असंगत है।

कोर्ट ने कहा कि सैन्य सेवा का स्थान चाहे कोई भी हो, हर सैनिक को कठोर अनुशासन, लंबी कार्य अवधि, परिवार से दूरी और हर समय तैनाती या युद्ध की आशंका जैसी मानसिक और शारीरिक चुनौतियों से गुजरना पड़ता है। “यहां तक कि पीस स्टेशन पर भी सैनिक जिस स्तर के तनाव का सामना करते हैं, वह उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को गहराई से प्रभावित करता है,” कोर्ट ने 1 जुलाई को दिए 85 पन्नों के अपने साझा निर्णय में कहा।

Video thumbnail

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि रिलीज मेडिकल बोर्ड (RMB) बिना स्पष्ट तर्क और सेवा अभिलेखों व चिकित्सा इतिहास के उचित विश्लेषण के, यह नहीं कह सकता कि बीमारी सेवा से संबंधित नहीं है या उससे बढ़ी नहीं है। “RMB द्वारा किया गया अस्पष्ट और रूढ़िवादी विश्लेषण, उस पर लगे दायित्व की पूर्ति नहीं करता,” कोर्ट ने टिप्पणी की।

READ ALSO  HC Upholds Life Term of Six Murder Convicts

रक्षा मंत्रालय का तर्क था कि जिन सैनिकों की पेंशन दी गई है, उनकी बीमारी पीस पोस्टिंग के दौरान हुई थी और RMB ने उसे सेवा से असंबंधित बताया था। लेकिन हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि इनमें से कई सैनिक पहले कठिन या सीमावर्ती क्षेत्रों में तैनात रह चुके थे, और उनकी बीमारी को संपूर्ण सैन्य सेवा के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।

कोर्ट ने कहा, “यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारे सशस्त्र बलों के सदस्यों को सिर्फ इस आधार पर विकलांगता पेंशन से वंचित किया जा रहा है कि उनकी बीमारी किसी शांतिपूर्ण क्षेत्र में सेवा के दौरान सामने आई।”

READ ALSO  मानहानि मामले में सजा के खिलाफ राहुल गांधी 3 अप्रैल को गुजरात की अदालत में अपील दायर करेंगे

कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी बीमारी को सिर्फ लाइफस्टाइल डिसऑर्डर कह देना, बिना व्यक्ति-विशेष की पृष्ठभूमि को देखे, पेंशन देने से इनकार करने का उचित आधार नहीं हो सकता।

फैसले में कोर्ट ने यह दोहराया कि विकलांगता पेंशन राज्य का अपने सैनिकों के प्रति संवैधानिक उत्तरदायित्व है, और चाहे सैनिक संचालन क्षेत्र में हो या शांतिपूर्ण क्षेत्र में, सैन्य सेवा में निहित तनाव कई बार गंभीर बीमारियों को जन्म दे सकता है। अतः प्रत्येक मामले में निष्पक्ष और व्यक्तिगत स्तर पर मूल्यांकन किया जाना अनिवार्य है।

READ ALSO  बॉम्बे हाई कोर्ट ने होर्डिंग विरोधी आदेशों का पालन न करने के लिए राज्य और नागरिक निकायों की आलोचना की

यह निर्णय उन अनेक लंबित मामलों को प्रभावित कर सकता है, जिनमें पूर्व सैनिक सेवा से जुड़ी विकलांगता के लिए उचित मुआवजा मांग रहे हैं।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles