प्रतिबंधित स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) के पूर्व महासचिव सफदर नागोरी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। उन्होंने यह स्पष्ट करने की मांग की है कि क्या वर्ष 2022 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए देशद्रोह मामलों पर रोक संबंधी आदेश का प्रभाव उनकी लंबित अपील पर भी पड़ेगा, जबकि ट्रायल कोर्ट द्वारा पहले ही उन्हें दोषी ठहराते हुए उम्रकैद की सजा दी जा चुकी है।
नागोरी को फरवरी 2017 में इंदौर की एक निचली अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124A (देशद्रोह) और अन्य धाराओं के तहत दोषी ठहराया था। उन्होंने इस सजा के खिलाफ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में अपील दायर की थी। लेकिन इस वर्ष 15 मई को अंतिम बहस के दौरान हाईकोर्ट ने आगे की सुनवाई यह कहते हुए टाल दी कि सुप्रीम कोर्ट ने मई 2022 में सभी देशद्रोह संबंधी मुकदमों को रोकने का निर्देश दिया है, जब तक कि इस कानून की संवैधानिक वैधता की समीक्षा पूरी न हो जाए।
इसके जवाब में नागोरी ने अब सुप्रीम कोर्ट से यह स्पष्ट करने की मांग की है कि क्या इस आदेश की रोक उन अपीलों पर भी लागू होती है जिनमें ट्रायल समाप्त हो चुका है और दोषसिद्धि हो चुकी है।

न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की अवकाशकालीन पीठ ने इस याचिका पर मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करते हुए मामले की सुनवाई जुलाई के दूसरे सप्ताह में करने का निर्देश दिया है।
पीठ ने यह भी दर्ज किया कि नागोरी की अपील हाईकोर्ट में अंतिम चरण में थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के 2022 के आदेश के चलते उसे रोक दिया गया। नागोरी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता शदान फरासत ने दलील दी कि 2022 का आदेश नए देशद्रोह मामलों को रोकने के लिए था, न कि उन मामलों की अपीलों को असीमित समय तक स्थगित करने के लिए जिनमें पहले ही दोषसिद्धि हो चुकी है। उन्होंने आग्रह किया कि अपील की सुनवाई आगे बढ़ाई जाए ताकि आदेश की भावना का उल्लंघन न हो।
हालांकि, पीठ ने कहा कि चूंकि 2022 का आदेश तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा पारित किया गया था, इसलिए वर्तमान पीठ उस पर कोई स्पष्टता नहीं दे सकती। पीठ ने यह अवश्य दर्ज किया कि हाईकोर्ट ने 11 मई 2022 के आदेश के अनुच्छेद 8(ड) को लेकर स्पष्टीकरण मांगा है।
उल्लेखनीय है कि 11 मई 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने एसजी वोम्बटकेरे की अगुवाई में दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124A के तहत सभी लंबित “ट्रायल, अपील और कार्यवाहियां” स्थगित की जाएं। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा था कि यदि अन्य आरोपों के तहत कार्यवाही से अभियुक्त को कोई नुकसान नहीं होगा तो वह जारी रह सकती है।
नागोरी का मामला विशेष रूप से जटिल है क्योंकि उनकी उम्रकैद की सजा मुख्य रूप से देशद्रोह के आरोप में हुई थी, जबकि उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153A (वर्गों के बीच वैमनस्य फैलाना) और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत भी दोष सिद्ध हुए हैं। वे पिछले 17 वर्षों से भोपाल सेंट्रल जेल में बंद हैं।
उनके खिलाफ यह मामला वर्ष 2008 में दर्ज किया गया था, जबकि SIMI को केंद्र सरकार ने 2001 में कथित राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के चलते प्रतिबंधित किया था। तब से अब तक केंद्र SIMI पर प्रतिबंध को समय-समय पर बढ़ाता रहा है और जनवरी 2024 में इसे फिर से पांच वर्षों के लिए बढ़ाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट में लंबित यह याचिका देश भर में विभिन्न अदालतों में अटकी पड़ी देशद्रोह मामलों की अपीलों पर प्रभाव डाल सकती है, जो फिलहाल संवैधानिक समीक्षा के चलते ठहर गई हैं।