एक 72 वर्षीय महिला वकील को कथित रूप से जांच एजेंसी के फर्जी अधिकारियों द्वारा नौ दिनों तक “डिजिटल अरेस्ट” में रखकर ₹3.29 करोड़ की ठगी का शिकार बनाया गया। यह चौंकाने वाला मामला तब सामने आया जब पीड़िता ने 24 जून को अपने बेटे को पूरी घटना बताई, जिसके बाद साइबर क्राइम पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई गई।
एफआईआर के अनुसार, महिला को पहली बार 10 जून को उनके लैंडलाइन पर एक कॉल आया। कॉल करने वाले ने दावा किया कि उनकी आधार कार्ड और बैंक खाता जानकारी का उपयोग अवैध गतिविधियों जैसे हथियारों की तस्करी, ब्लैकमेलिंग और जुए में किया जा रहा है। जब महिला ने किसी भी प्रकार की संलिप्तता से इनकार किया, तो आरोपियों ने उन्हें गिरफ्तारी और कानूनी कार्रवाई की धमकी दी।
घबराई हुई महिला को “मामले को सुलझाने” के लिए एक विशेष नंबर पर कॉल करके नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) लेने की सलाह दी गई। महिला ने डर के चलते निर्देशों का पालन किया। 16 जून से आरोपियों ने उन्हें “डिजिटल अरेस्ट” में रखते हुए परिवार से अलग कर दिया और लगातार मानसिक दबाव बनाते हुए बड़ी धनराशि ट्रांसफर करने को मजबूर किया।

अगले नौ दिनों में महिला को अपनी फिक्स्ड डिपॉजिट तोड़कर ₹3.29 करोड़ की राशि अलग-अलग बैंक खातों में भेजने के लिए मजबूर किया गया। आरोपियों ने उन्हें विश्वास दिलाया कि जांच समाप्त होने के बाद सारी रकम वापस कर दी जाएगी। इस दौरान पीड़िता को चेतावनी दी गई कि यदि उन्होंने किसी को कुछ बताया, तो उनकी स्थिति और खराब हो सकती है।
घटना का खुलासा तब हुआ जब महिला ने 24 जून को अपने बेटे को पूरी बात बताई। बेटे के हस्तक्षेप के बाद साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज कराया गया। महिला ने अपनी शिकायत में दो लोगों — शिवा प्रसाद प्रदीप सावंत और प्रवीण सूद — के नाम आरोपी के रूप में लिए हैं।
शिकायत के आधार पर भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 308(2) (जबरन वसूली), 318(4) (धोखाधड़ी), और 319(2) (छलपूर्वक व्यक्ति बनकर धोखाधड़ी) तथा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66डी (संचार उपकरणों के माध्यम से व्यक्ति बनकर धोखाधड़ी) के तहत मामला दर्ज किया गया है।
एक पुलिस अधिकारी ने पुष्टि की है कि आरोपियों की पहचान और ठगी की गई राशि की बरामदगी के लिए जांच जारी है।