सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि मोटर वाहन अधिनियम के तहत किसी मृतक के विवाहित पुत्र और पुत्रियां, भले ही वे आर्थिक रूप से उस पर निर्भर न रहे हों, फिर भी मुआवजा मांगने के लिए विधिक उत्तराधिकारी होने के नाते पूर्णतया पात्र हैं। यह निर्णय सिविल अपील संख्या 7199/2025 (जितेन्द्र कुमार एवं अन्य बनाम संजय प्रसाद एवं अन्य) में सुनाया गया, जिसमें एक 64 वर्षीय स्व-नियोजित व्यक्ति की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी।
मामले की पृष्ठभूमि
12 अक्टूबर 2010 को निरंजन दास नामक व्यक्ति अपने मित्र के साथ कार में जिंद से नरवाना जा रहे थे। जब वे नरवाना रोड स्थित शुगर मिल्स के पास पहुंचे, तब सामने से आ रहा एक ट्रेलर (पंजीकरण संख्या WB-23B-12161) गलत दिशा में तेज़ और लापरवाही से चलाया जा रहा था, जिसने उनकी कार को टक्कर मार दी। इस हादसे में निरंजन दास की मृत्यु हो गई। इस घटना के संबंध में थाना स्तर पर एफआईआर संख्या 331/2010 भारतीय दंड संहिता की धारा 279 और 304A के तहत दर्ज की गई।
मृतक के दो विवाहित पुत्रों और एक अविवाहित पुत्री ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166 के तहत दावा याचिका संख्या 241/2013 दायर की, जिसमें ₹5 करोड़ का मुआवजा और 18% वार्षिक ब्याज की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया कि मृतक एक आटा चक्की चला रहे थे और ASEL एग्रो प्रा. लि. व रामा एसोसिएट्स प्रा. लि. में परामर्शदाता के रूप में कार्यरत थे, जिससे ₹3.5 लाख प्रतिमाह आय अर्जित करते थे।

मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT), करनाल ने दिनांक 12 मार्च 2014 को ₹1,60,000 मुआवजा और 9% वार्षिक ब्याज प्रदान किया। अधिकरण ने यह पाया कि याचिकाकर्ता पुत्र पहले से ही फर्म के भागीदार थे और स्वतंत्र आय अर्जित कर रहे थे, अतः वे मृतक पर आर्थिक रूप से निर्भर नहीं थे। मुआवजे में ₹50,000 धारा 140 के तहत न्यूनतम वैधानिक क्षतिपूर्ति, ₹10,000 अंतिम संस्कार और परिवहन के लिए तथा ₹1,00,000 स्नेह व प्रेम के लिए दिया गया। ट्रेलर के चालक, मालिक और बीमा कंपनी को संयुक्त रूप से जिम्मेदार ठहराया गया।
हाईकोर्ट की कार्यवाही
MACT के आदेश से असंतुष्ट याचिकाकर्ताओं ने FAO-4114-2016 के माध्यम से पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट, चंडीगढ़ में अपील दायर की। हाईकोर्ट ने दिनांक 10 मई 2023 को पारित निर्णय में मुआवजा ₹21,70,000 (जिसमें MACT द्वारा दी गई राशि शामिल थी) कर दिया और 7.5% ब्याज प्रदान किया। कोर्ट ने मृतक की मासिक आय ₹50,000 मानी, लेकिन आटा चक्की की आय को मानने से इनकार कर दिया क्योंकि वह व्यवसाय अभी भी पुत्रों द्वारा संचालित किया जा रहा था। कोर्ट ने निर्भरता न होने की पुष्टि करते हुए आय का 50% व्यक्तिगत व्यय के रूप में घटाया और सारला वर्मा बनाम दिल्ली ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन के अनुसार गुणक 7 लागू किया।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट ने मृतक की आय निर्धारण में त्रुटि की, क्योंकि उसने आयकर विवरणियों (ITR) और परामर्शदाता की आय को अनदेखा किया।
न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने अपील स्वीकार करते हुए कहा कि मृतक की वार्षिक आय आकलन वर्ष 2011–12 के अनुसार ₹10,36,331 थी, जो कि ₹86,360 प्रतिमाह के बराबर है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने बिना पर्याप्त आधार के अनुमान के रूप में ₹50,000 प्रतिमाह आय मानी।
भविष्य संभावनाओं के तहत अतिरिक्त मुआवजे की मांग खारिज करते हुए कोर्ट ने National Insurance Co. Ltd. बनाम प्रणय सेठी का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि 60 वर्ष से अधिक आयु के मृतकों के लिए भविष्य की संभावनाएं नहीं जोड़ी जाएंगी।
महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने National Insurance Co. Ltd. बनाम बीरेन्दर और Seema Rani एवं अन्य बनाम ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एवं अन्य का हवाला देते हुए कहा:
“यह अब विधिसम्मत रूप से स्थापित है कि मृतक के विधिक उत्तराधिकारी मुआवजा मांगने के लिए हकदार हैं, चाहे वे विवाहित और स्वावलंबी पुत्र/पुत्री ही क्यों न हों। ट्रिब्यूनल का यह कर्तव्य है कि वह उनके दावे पर विचार करे, इस बात से अलग कि वे पूर्ण रूप से निर्भर थे या नहीं।”
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता मृतक के व्यवसाय में भागीदार होने और फ्लोर मिल का संचालन कर रहे होने के बावजूद, विधिक उत्तराधिकारी होने के कारण मुआवजे के पात्र हैं। हालांकि, निर्भरता न होने के कारण आय का 50% व्यक्तिगत खर्च के रूप में घटाया गया।
प्रणय सेठी निर्णय के आलोक में, कोर्ट ने परंपरागत मदों जैसे संपत्ति की हानि, सांत्वना और अंतिम संस्कार व्यय में 10% की वृद्धि की।
अंतिम मुआवजा विवरण
सुप्रीम कोर्ट ने ₹38,08,662 की कुल क्षतिपूर्ति ₹86,360 मासिक आय के आधार पर निम्नानुसार निर्धारित की:
- आय की हानि: ₹36,27,162
- संपत्ति की हानि: ₹18,150
- अंतिम संस्कार व्यय: ₹18,150
- सांत्वना (कंसोर्टियम): ₹1,45,200
कोर्ट ने आदेश दिया कि यह मुआवजा राशि प्रत्यक्ष रूप से सभी याचिकाकर्ताओं — अपीलकर्ता संख्या 1 (पुत्र), अपीलकर्ता संख्या 2 (पुत्र) और प्रतिवादी संख्या 4 (पुत्री) — के बैंक खातों में चार सप्ताह की अवधि में जमा की जाए। बैंक विवरण बीमा कंपनी के अधिवक्ता को तत्काल उपलब्ध कराए जाने को कहा गया।