कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को X कॉर्प इंडिया (पूर्व में ट्विटर) के वरिष्ठ वकील द्वारा की गई उस टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें उन्होंने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत सरकारी अधिकारियों द्वारा कंटेंट हटाने के नोटिस जारी करने की वैधता पर सवाल उठाया था।
X कॉर्प द्वारा दायर याचिका की सुनवाई के दौरान—जो आईटी एक्ट की धारा 79(3)(b) के दायरे को चुनौती देती है—वरिष्ठ अधिवक्ता के.जी. राघवन ने दलील दी कि अगर “हर टॉम, डिक और हैरी अधिकारी” ऐसा नोटिस जारी करने लगे तो यह सत्ता के दुरुपयोग के बराबर होगा। यह टिप्पणी रेल मंत्रालय की ओर से हाल ही में जारी एक नोटिस के संदर्भ में थी, जिसमें हैदराबाद में रेलवे ट्रैक पर कार चला रही एक महिला का वीडियो हटाने को कहा गया था।
इस पर न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना, जो इस मामले की अध्यक्षता कर रहे थे, ने आपत्ति जताते हुए कहा, “वे भारत सरकार के अधिकारी हैं, मैं इस भाषा पर आपत्ति करता हूं।”

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी वकील की भाषा की निंदा करते हुए कहा, “वे टॉम, डिक और हैरी नहीं हैं। वे विधिक प्राधिकारी हैं। अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को ऐसा अहंकार नहीं दिखाना चाहिए।” उन्होंने यह भी कहा कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को भारत के कानूनों का पालन करना चाहिए, जैसे वे अन्य देशों में करते हैं।
X कॉर्प का तर्क है कि केवल वे अधिकारी जो विधिवत रूप से धारा 69A और ब्लॉकिंग नियमों के तहत अधिकृत हैं, वही ऐसा निर्देश दे सकते हैं। कंपनी ने अदालत से स्पष्टता की मांग की है कि बिना वैध प्रक्रिया के जारी किए गए ब्लॉकिंग आदेशों के आधार पर मंत्रालयों को दंडात्मक कार्रवाई करने से रोका जाए।
डिजिटल मीडिया संगठनों की ओर से हस्तक्षेप की मांग करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता आदित्य सोनधी ने कहा कि इस तरह के कंटेंट हटाने के आदेश सीधे मीडिया प्रकाशकों को प्रभावित करते हैं। हालांकि, पीठ ने हस्तक्षेपकर्ता की वैधता पर सवाल उठाया, वहीं मेहता ने इसका विरोध करते हुए कहा, “ट्विटर को किसी समर्थन की आवश्यकता नहीं है।”
अदालत ने X कॉर्प को अपनी याचिका संशोधित कर कई केंद्रीय मंत्रालयों को पक्षकार बनाने की अनुमति दी और मामले की अंतिम सुनवाई की तिथि 8 जुलाई तय की। केंद्र सरकार को निर्देश दिया गया है कि वह अगले सुनवाई से पहले पक्षकार बनाए जाने के आवेदन पर अपना जवाब दाखिल करे।