उत्तराखंड हाईकोर्ट ने शुक्रवार को राज्य में प्रस्तावित पंचायत चुनावों पर पूर्व में लगाई गई रोक को हटा लिया है, जिससे चुनाव प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का रास्ता साफ हो गया है। हालांकि, अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह चुनावों की आरक्षण सूची में कथित अनियमितताओं को लेकर दायर जनहित याचिकाओं (PILs) पर तीन सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करे।
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ ने यह आदेश उन अनेक याचिकाओं की सुनवाई के बाद दिया, जिनमें ब्लॉक प्रमुख और जिला पंचायत अध्यक्ष पदों के लिए लागू आरक्षण नीति को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि कुछ वर्गों को लगातार प्रतिनिधित्व दिया जा रहा है, जो संविधान के अनुच्छेद 243 और सुप्रीम कोर्ट के बार-बार दिए गए निर्देशों का उल्लंघन है।
अदालत ने राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया कि वह नया चुनाव कार्यक्रम जारी करे, जिसमें पहले रद्द किए गए चुनाव कार्यक्रम की तुलना में तीन दिन की बढ़ोतरी की जाए। उल्लेखनीय है कि पहले 10 और 15 जुलाई को चुनाव होने थे, लेकिन 23 जून को अंतरिम रोक लगने के बाद वह कार्यक्रम रद्द कर दिया गया था।

राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता एस.एन. बाबुलकर और मुख्य स्थायी अधिवक्ता सी.डी. रावत ने अदालत को बताया कि पिछली आरक्षण सूची अब मान्य नहीं रही और पिछड़े वर्गों के लिए राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट के आधार पर नया रोस्टर तैयार करना जरूरी था, जिससे न्यायसंगत प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके।
अदालत के आदेश से जहां चुनाव प्रक्रिया को पुनः शुरू करने की अनुमति मिल गई है, वहीं आरक्षण की वैधता का मुद्दा न्यायिक समीक्षा के लिए खुला रखा गया है। अब इस मामले की अगली सुनवाई राज्य सरकार द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर जवाब दाखिल करने के बाद होगी।