आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने यह निर्णय दिया है कि सेवा में पुनः नियुक्ति के समय वेतन निर्धारण में हुई त्रुटि के कारण भुगतान की गई अतिरिक्त राशि सेवानिवृत्त पुलिस कांस्टेबल से वसूल नहीं की जा सकती, क्योंकि वह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित अपवाद श्रेणियों में आता है।
न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी और न्यायमूर्ति चल्ला गुना रंजन की खंडपीठ ने विजयवाड़ा पुलिस आयुक्त एवं अन्य की याचिका (W.P. No. 5756 of 2021) को खारिज कर दिया, जो प्रशासनिक अधिकरण द्वारा पुलिस कांस्टेबल पी.एम. बाबजी के पक्ष में दिए गए निर्णय को चुनौती देने हेतु दायर की गई थी।
पृष्ठभूमि
पी.एम. बाबजी ने 13 जुलाई 1984 को कांस्टेबल पद पर नियुक्ति प्राप्त की थी, और 8 नवम्बर 1994 को उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया। वर्ष 1998 में उन्होंने पुनः सेवा में लिए जाने हेतु प्रार्थना पत्र दिया, जिसे मानवीय आधार पर स्वीकार करते हुए गृह विभाग ने G.O.Ms.No.2396 (दिनांक 30.11.1998) जारी कर पुनः नियुक्ति की अनुमति दी, यह स्पष्ट करते हुए कि यह नियुक्ति आंध्र प्रदेश राज्य एवं अधीनस्थ सेवा नियम, 1996 के नियम 30 के अधीन होगी।

पुनः नियुक्ति के समय बाबजी का वेतन उनके पूर्व के अंतिम वेतन के आधार पर निर्धारित किया गया। परंतु, सेवानिवृत्ति के समय (30 जून 2017), पुलिस आयुक्त ने 10 मई 2017 को आदेश जारी कर वेतन का पुनः निर्धारण किया और ₹12,34,303 की ओवरड्राफ्ट राशि वसूलने का निर्देश दिया, जिसे पेंशन, ग्रेच्युटी एवं कम्यूटेशन से समायोजित किया जाना था।
अधिकरण में कार्यवाही
बाबजी ने उक्त वसूली आदेश को आंध्र प्रदेश प्रशासनिक अधिकरण में चुनौती दी (O.A. No. 2401 of 2017)। अधिकरण ने उनके पक्ष में निर्णय दिया और यह निर्देश दिया कि वेतन निर्धारण आदेश दिनांक 10.05.2017 के अनुसार पेंशन और सेवानिवृत्त लाभ दिए जाएं, परंतु ₹12.34 लाख की वसूली नहीं की जा सकती।
याचिकाकर्ता का पक्ष
सरकारी अधिवक्ता ने तर्क दिया कि बाबजी की पुनः नियुक्ति को एक नई नियुक्ति माना गया और नियम 30 के अनुसार पूर्व सेवा की गणना नहीं की जा सकती थी। इसलिए पिछली सेवा के आधार पर वेतन निर्धारण गलती थी और उससे हुई अतिरिक्त भुगतान की वसूली की जा सकती है। उन्होंने Chandi Prasad Uniyal v. State of Uttarakhand और High Court of Punjab and Haryana v. Jagdev Singh पर भरोसा किया।
प्रतिवादी का पक्ष
प्रतिवादी की ओर से कहा गया कि अतिरिक्त भुगतान में बाबजी की कोई धोखाधड़ी या गलत प्रस्तुति नहीं थी। वे Group-D कर्मचारी थे और एक वर्ष के भीतर सेवानिवृत्त होने वाले थे, इसलिए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय State of Punjab v. Rafiq Masih के अनुसार उनसे कोई वसूली नहीं की जा सकती।
न्यायालय का विश्लेषण
हाईकोर्ट ने कहा कि Rafiq Masih मामले में वर्णित अपवाद स्थितियों में यह वसूली अवैध मानी जाती है, जैसे कि—
- ग्रुप-सी और ग्रुप-डी कर्मचारियों से वसूली।
- सेवानिवृत्त या एक वर्ष के भीतर सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारियों से वसूली।
- जब कर्मचारी ने धोखाधड़ी या गलत प्रस्तुति नहीं की हो।
न्यायालय ने Syed Abdul Qadir v. State of Bihar, Col. B.J. Akkara v. Govt. of India और Thomas Daniel v. State of Kerala के निर्णयों का भी हवाला दिया।
पीठ ने कहा:
“सेवानिवृत्ति के समय वेतन पुनः निर्धारण के लिए दी गई सहमति को पहले किए गए अतिरिक्त भुगतान की वसूली हेतु सहमति नहीं माना जा सकता।”
निर्णय
हाईकोर्ट ने पाया कि बाबजी ग्रुप-डी कर्मचारी थे, उन्होंने कोई धोखाधड़ी नहीं की थी, और उनसे वसूली Rafiq Masih फैसले में निर्धारित मापदंडों के विरुद्ध होती। न्यायालय ने कहा कि नियम 30 की अनदेखी कर वेतन निर्धारण किया गया हो सकता है, परन्तु वसूली अब नहीं की जा सकती।
“आवेदक/प्रतिवादी से की गई अतिरिक्त राशि की वसूली नहीं की जा सकती।”
मामला: पुलिस आयुक्त, विजयवाड़ा एवं अन्य बनाम पी. एम. बाबजी
वृत्त संख्या: डब्ल्यूपी नं. 5756 ऑफ 2021