उपराष्ट्रपति धनखड़ ने आपातकाल के दौरान सुप्रीम कोर्ट के फैसले को न्यायिक इतिहास का सबसे काला अध्याय बताया

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शुक्रवार को 1975 में आपातकाल के दौरान दिए गए सुप्रीम कोर्ट के एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ल मामले के फैसले की तीखी आलोचना करते हुए इसे “दुनिया के न्यायिक इतिहास का सबसे काला फैसला” करार दिया।

राज्यसभा के प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि इस फैसले ने तानाशाही और अधिनायकवाद को वैधता प्रदान कर दी। उन्होंने कहा, “जब देश में लोकतंत्र संकट में था, तब लोग न्यायपालिका की ओर देख रहे थे। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने नौ उच्च न्यायालयों के शानदार और सैद्धांतिक फैसलों को पलट दिया और कार्यपालिका की इच्छा को सर्वोपरि मान लिया।”

धनखड़ ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद की भूमिका पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ने आपातकाल की घोषणा पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सलाह पर हस्ताक्षर किए, न कि मंत्रिपरिषद की सलाह पर। “संविधान स्पष्ट रूप से कहता है कि राष्ट्रपति किसी एक व्यक्ति की सलाह पर कार्य नहीं कर सकते। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद ही राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए अधिकृत होती है,” उन्होंने कहा।

धनखड़ ने इसे संविधान का उल्लंघन बताया और कहा कि इसके परिणामस्वरूप “इस देश के एक लाख से अधिक नागरिकों को कुछ ही घंटों में जेल में डाल दिया गया।”

उपराष्ट्रपति ने 1976 के एडीएम जबलपुर मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के 4-1 के बहुमत वाले निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि इस फैसले ने राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों के निलंबन को वैध ठहरा दिया। उस समय के मुख्य न्यायाधीश ए.एन. रे, न्यायमूर्ति एम.एच. बेग, वाई.वी. चंद्रचूड़ और पी.एन. भगवती ने बहुमत में रहते हुए कहा कि आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) के उल्लंघन पर कोई कानूनी उपाय नहीं है।

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केवल न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना ने असहमति जताई और लिखा कि जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार अंतर्निहित है और यह केवल संविधान की देन नहीं है।

धनखड़ ने कहा, “इस फैसले ने यह स्थापित किया कि कार्यपालिका जब तक चाहे आपातकाल लागू रख सकती है। यह लोकतंत्र और कानून के शासन के सिद्धांतों के खिलाफ था।”

उपराष्ट्रपति ने वर्तमान सरकार के उस निर्णय का स्वागत किया, जिसमें हर वर्ष 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की गई है। उन्होंने कहा, “यह निर्णय समझदारी से लिया गया है ताकि आने वाली पीढ़ियां संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए सजग रहें।”

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गौरतलब है कि भारत में आपातकाल 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक लागू रहा, जिसके दौरान नागरिक स्वतंत्रताओं पर व्यापक पाबंदियां लगाई गई थीं और हजारों लोगों को बिना कारण गिरफ्तार किया गया था।


एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ल मामला भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक विवादास्पद मुकदमा रहा है। हाल के वर्षों में कई पूर्व और वर्तमान न्यायाधीशों ने इस फैसले पर खेद जताया है। 2017 के पुट्टस्वामी (निजता के अधिकार) मामले में इस फैसले को औपचारिक रूप से खारिज कर दिया गया था।

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