राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने बिहार में बड़े पैमाने पर ताड़ के पेड़ों की कटाई और उससे जुड़ी बिजली गिरने से हो रही मौतों में वृद्धि को लेकर स्वतः संज्ञान लिया है और इस संबंध में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), बिहार सरकार के संबंधित विभागों और अन्य एजेंसियों को नोटिस जारी किया है।
न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल की पीठ ने 5 जून को यह आदेश पारित किया। अधिकरण ने कहा कि ताड़ के पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के कारण राज्य में बिजली गिरने से हो रही मौतों में वृद्धि हो सकती है, जो एक गंभीर पारिस्थितिकीय क्षरण को दर्शाता है। एनजीटी द्वारा उद्धृत रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2016 से अब तक बिहार में बिजली गिरने से 2,000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
अधिकरण ने कहा कि ताड़ के ऊंचे पेड़ ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली से बचाव में सहायक होते थे, लेकिन शराबबंदी नीति लागू होने के बाद ताड़ी निकालने पर प्रतिबंध लगने के कारण इन पेड़ों का आर्थिक महत्व घट गया, जिससे इनकी व्यापक कटाई होने लगी।

पीठ ने नोट किया, “लेख में कहा गया है कि ताड़ के पेड़ों की व्यापक कटाई के बाद बिजली गिरने से मौतों की संख्या बढ़ने लगी। सबसे अधिक प्रभावित जिलों में औरंगाबाद, पटना, नालंदा, कैमूर, रोहतास, भोजपुर और बक्सर शामिल हैं। अधिकतर घटनाएं दोपहर 12:30 बजे से 4:30 बजे के बीच होती हैं, जब लोग खेतों और खुले में काम कर रहे होते हैं।”
अधिकरण ने यह भी टिप्पणी की कि राज्य में ताड़ के पेड़ों के अंतर्गत आने वाला क्षेत्रफल लगभग 40% तक घट चुका है और नई पौधारोपण की गतिविधियां लगभग बंद हो चुकी हैं। यह स्थिति पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम के प्रावधानों को आकर्षित कर सकती है, जिससे नियामकीय हस्तक्षेप की आवश्यकता उत्पन्न होती है।
इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, एनजीटी ने सीपीसीबी, बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय और बिहार आपदा प्रबंधन विभाग को मामले में पक्षकार बनाया है। सभी संबंधित पक्षों को निर्देश दिया गया है कि वे अगली सुनवाई से पूर्व अपनी प्रतिक्रिया प्रस्तुत करें। यह सुनवाई एनजीटी की कोलकाता स्थित पूर्वी अंचल पीठ के समक्ष 7 अगस्त को निर्धारित है।