सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली और बिहार पुलिस को निर्देश दिया कि वे 16 वर्षीय एक किशोरी और उसके मित्र को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करें। लड़की ने आरोप लगाया है कि उसे जबरन एक 33 वर्षीय ठेकेदार से शादी के लिए मजबूर किया गया था, ताकि उसके माता-पिता के आर्थिक कर्ज को चुकाया जा सके।
जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस मनमोहन की पीठ लड़की द्वारा अनुच्छेद 32 के तहत दायर एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत शादी को रद्द करने और सुरक्षा प्रदान करने की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि उसे उसके पति द्वारा शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया और जब उसने विवाह से बाहर निकलने की कोशिश की तो उसे धमकियाँ दी गईं। लड़की ने यह भी कहा कि उसके माता-पिता ने उसकी कोई मदद नहीं की।
पीड़िता ने हाल ही में कक्षा 10 की बोर्ड परीक्षा उत्तीर्ण की है और अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती है, लेकिन ससुराल पक्ष इसके खिलाफ है। अदालत को यह भी बताया गया कि जब वह अपने एक मित्र के साथ घर छोड़कर गई, तो उसके परिवार ने मित्र के खिलाफ अपहरण का मामला दर्ज करा दिया। आरोप है कि उसका पति इस मामले को स्वयं देख रहा है और उसे जान से मारने की धमकी दे चुका है।
इन गंभीर आरोपों को देखते हुए अदालत ने स्पष्ट निर्देश जारी किए। पीठ ने अपने आदेश में कहा:
“हम बिहार के पुलिस महानिदेशक तथा दिल्ली के पुलिस आयुक्त को निर्देश देते हैं कि वे याचिकाकर्ता और उसके ‘नेक्स्ट फ्रेंड’ को पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित करें, ताकि उन्हें कोई नुकसान न हो। साथ ही पुलिस अधिकारियों को यह निर्देश दिए जाएं कि वे याचिकाकर्ता और उसके मित्र के संपर्क में रहें। किसी आपात स्थिति में आवश्यक सहायता उपलब्ध कराई जाए। प्रतिवादी संख्या 1 और 2 अगली सुनवाई की तिथि तक सीलबंद लिफाफे में अलग-अलग स्टेटस रिपोर्ट अदालत में प्रस्तुत करें। मामले की अगली सुनवाई 15 जुलाई को की जाएगी।”
यह मामला भारत में बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के लागू होने के बावजूद बाल विवाह की जारी चुनौतियों को उजागर करता है और न्यायपालिका की उन पीड़ित नाबालिगों को राहत प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।