उत्तर प्रदेश के स्कूलों में रामायण और वेदों पर आधारित ग्रीष्मकालीन कार्यशालाओं के आयोजन को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है।
मुख्य न्यायाधीश अरुण भासली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका दायर करने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट नियमों के तहत जरूरी औपचारिकताओं का पालन नहीं किया, जिसमें याचिकाकर्ता की पृष्ठभूमि और व्यक्तिगत रुचि का उल्लेख करना अनिवार्य होता है।
यह याचिका उस पत्र के खिलाफ दाखिल की गई थी जो 5 मई, 2025 को अयोध्या स्थित इंटरनेशनल रामायण एंड वैदिक रिसर्च इंस्टिट्यूट के निदेशक द्वारा राज्य के सभी बेसिक शिक्षा अधिकारियों (BSA) को भेजा गया था। पत्र में राज्य के सभी 75 जिलों में “समर रामायण” और “वेद अभिरुचि” कार्यशालाएं आयोजित करने की अनुमति मांगी गई थी।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “याचिकाकर्ता ने केवल स्वयं को एक सामाजिक रूप से जागरूक नागरिक और शैक्षिक क्षेत्र से जुड़ा व्यक्ति बताते हुए कोई ठोस जानकारी या पृष्ठभूमि प्रस्तुत नहीं की। उन्होंने हाईकोर्ट के नियमों में दी गई आवश्यक घोषणाओं का पालन नहीं किया है।”
न्यायालय ने यह भी कहा कि “याचिकाकर्ता यह स्पष्ट नहीं कर पाए कि वे देवरिया जिले के निवासी होते हुए भी महराजगंज जिले के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा जारी दस्तावेजों की जानकारी उन्हें कैसे प्राप्त हुई।”
कोर्ट ने टिप्पणी की कि याचिकाकर्ता ने अपनी पहचान को जानबूझकर छुपाने का प्रयास किया है, जिससे याचिका की मंशा संदिग्ध प्रतीत होती है।