सुप्रीम कोर्ट पैनल ने दक्षिण दिल्ली रिज क्षेत्र में ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट को दी सशर्त मंज़ूरी, अंतिम निर्णय सुप्रीम कोर्ट पर निर्भर

सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी (CEC) ने दक्षिण दिल्ली के वसंत कुंज सेक्टर बी, पॉकेट-1 में प्रस्तावित ग्रुप हाउसिंग प्रोजेक्ट को सशर्त पर्यावरणीय मंज़ूरी दे दी है। यह परियोजना पारिस्थितिक दृष्टि से संवेदनशील ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ क्षेत्र के भीतर स्थित है। CEC ने 14 मई को सर्वोच्च न्यायालय को सौंपी अपनी रिपोर्ट में इस परियोजना को कड़े पर्यावरणीय शर्तों के साथ आगे बढ़ाने की सिफारिश की है, जबकि अंतिम निर्णय सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिया जाएगा।

रिपोर्ट के अनुसार, कुल 5,353 वर्ग मीटर क्षेत्र में से लगभग 4,553 वर्ग मीटर (यानी 85%) ज़मीन ‘मॉर्फोलॉजिकल रिज’ में आती है, जिसे दिल्ली रिज की तरह ही कानूनी संरक्षण प्राप्त है। हालांकि, समिति ने निरीक्षण के बाद पाया कि यह ज़मीन समतल है और चारों ओर दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) की मौजूदा आवासीय परियोजनाओं से घिरी हुई है। सबसे अहम बात यह रही कि वहां मौजूद 23 पेड़ों में से कोई भी काटा या स्थानांतरित नहीं किया जाएगा।

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समिति ने बताया कि इनमें से 19 पेड़ स्वस्थ हैं, तीन सूख चुके हैं और एक गिरा हुआ पेड़ पुनः स्थापित किया गया है। रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि “किसी भी पेड़ की कटाई की अनुमति नहीं होगी” और 500 देशी प्रजातियों के वृक्षों का प्रतिपूरक वृक्षारोपण किया जाएगा—250 आंतरिक सड़कों के किनारे और 250 परियोजना की बाहरी सीमा पर। साथ ही 385 मीटर लंबी हरित बाउंड्री फेंसिंग भी अनिवार्य रूप से लगाई जाएगी।

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यह परियोजना एक निजी बिल्डर द्वारा विकसित की जा रही है, जिसे DDA, नगर निगम दिल्ली (MCD), भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (AAI) और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) सहित राज्य स्तरीय पर्यावरण मूल्यांकन समिति से कई मंज़ूरियाँ प्राप्त हो चुकी हैं।

हालांकि, इस परियोजना का स्थानीय स्तर पर विरोध भी हो रहा है। निवासी राजीव रंजन ने एक आपत्ति पत्र देकर तर्क दिया कि रिज क्षेत्र में किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य पर्यावरणीय दृष्टिकोण से प्रतिबंधित होना चाहिए। इसके विपरीत, बिल्डर ने दावा किया कि स्थल में रिज जैसी कोई भौगोलिक विशेषता नहीं है और यह पहले से ही नगरीकरण से घिरा हुआ है।

दोनों पक्षों के तर्कों का संतुलन करते हुए CEC ने कहा कि यद्यपि यह क्षेत्र तकनीकी रूप से रिज ज़ोन में आता है, फिर भी इसकी भौगोलिक स्थिति, आसपास का विकास और पेड़ों की कटाई न होने के कारण इसे सशर्त मंज़ूरी दी जा सकती है। रिपोर्ट में अनुशंसा की गई है कि, “कोर्ट 4,553 वर्ग मीटर क्षेत्र में ग्रुप हाउसिंग परियोजना की अनुमति देने पर विचार कर सकती है, बशर्ते कि किसी पेड़ की कटाई न की जाए।”

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प्रस्तावित परियोजना में तीन आवासीय टावर शामिल होंगे, प्रत्येक में 3 बेसमेंट, एक स्टिल्ट फ्लोर और 9 आवासीय मंज़िलें (3B+S+9) होंगी।

इस बीच, स्थानीय निवासियों का विरोध जारी है। अगस्त 2024 में एक विरोध मार्च आयोजित किया गया था, जिसमें परियोजना पर दिल्ली मास्टर प्लान 2021 के उल्लंघन, 18 मीटर चौड़ी सड़क की अनुपस्थिति, तथा प्रवेश और निकास के लिए समुचित योजना न होने जैसे मुद्दे उठाए गए थे। आलोचकों का यह भी कहना है कि प्रस्तावित ऊंची इमारतें इस क्षेत्र की चार मंज़िलीय निम्न-ऊंचाई वाली रिहायशी प्रकृति से मेल नहीं खातीं।

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सुप्रीम कोर्ट आने वाले हफ्तों में इस परियोजना के भविष्य पर अंतिम निर्णय ले सकती है।

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