देश भर में न्यायिक प्रशासन को सुदृढ़ करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को सभी हाईकोर्टों को निर्देश दिया कि वे कोर्ट मैनेजरों की नियुक्ति और सेवा शर्तों के लिए नियम बनाएं या संशोधित करें। यह कार्य तीन माह के भीतर किया जाना चाहिए और असम नियमावली, 2018 को मॉडल के रूप में अपनाया जाना चाहिए। यह निर्णय All India Judges Association बनाम भारत सरकार, रिट याचिका (सिविल) संख्या 1022/1989 में सुनाया गया।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने यह भी आदेश दिया कि संबंधित राज्य सरकारें इन नियमों को प्राप्त होने के तीन माह के भीतर स्वीकृति प्रदान करें।
पृष्ठभूमि
यह मुद्दा कई हस्तक्षेप याचिकाओं और एक मूल रिट याचिका से उत्पन्न हुआ, जिसमें यह बताया गया था कि देश के विभिन्न राज्यों में तैनात कोर्ट मैनेजरों की सेवा शर्तें असंगत हैं और वे संविदा आधार पर कार्य कर रहे हैं। यह पद सबसे पहले 13वें वित्त आयोग (2010–2015) की सिफारिशों के तहत पेश किया गया था और इसे वित्त मंत्रालय ने भी समर्थन प्रदान किया था।
इन कोर्ट मैनेजरों—जो प्रायः एमबीए डिग्रीधारी होते हैं—की नियुक्ति का उद्देश्य न्यायिक कार्यों में जजों की सहायता करना और न्यायिक कार्यों की दक्षता को बढ़ाना था। हालांकि, 2 अगस्त 2018 के सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद कई हाईकोर्ट अब तक इन नियमों को बनाने या लागू करने में असफल रहे हैं, जिससे नई याचिकाएं दाखिल करनी पड़ीं।
कोर्ट की टिप्पणियां
पीठ ने कहा कि कोर्ट मैनेजरों की नियुक्ति न्यायालय प्रशासन को अधिक कुशल बनाने, लंबित मामलों को कम करने और न्यायिक अधिकारियों को सहयोग प्रदान करने के लिए महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने अपने 2018 के निर्णय को उद्धृत करते हुए दोहराया:
“पेशेवर रूप से योग्य कोर्ट मैनेजरों, जिन्हें प्राथमिकता रूप से एमबीए डिग्रीधारी होना चाहिए, की नियुक्ति की जानी चाहिए ताकि वे कोर्ट प्रशासन में सहायता प्रदान कर सकें… किसी भी जिले में कार्यरत व्यक्ति को राज्य सरकार द्वारा नियमित किया जाना चाहिए, क्योंकि हमारा दृढ़ मत है कि न्यायालय के उचित प्रशासनिक ढांचे के लिए इनकी सेवाएं आवश्यक हैं।”
कोर्ट ने यह भी चिंता व्यक्त की कि कई राज्यों में कोर्ट मैनेजर अभी भी संविदा या अस्थायी रूप से कार्य कर रहे हैं, और कहीं-कहीं तो यह पद समाप्त भी कर दिया गया है।
जारी किए गए निर्देश
न्यायालय ने अपने विस्तृत निर्णय में निम्नलिखित महत्वपूर्ण निर्देश दिए:
- असम नियमावली को मॉडल बनाना: सभी हाईकोर्ट असम नियमावली, 2018 के आधार पर कोर्ट मैनेजरों की सेवा शर्तों के लिए नियम तीन माह में बनाएं या संशोधित करें।
- राज्य सरकार की स्वीकृति: राज्य सरकारें इन नियमों को प्राप्त होने के तीन माह के भीतर स्वीकृति प्रदान करें।
- कक्षा-द्वितीय राजपत्रित दर्जा: कोर्ट मैनेजरों को कक्षा-द्वितीय राजपत्रित अधिकारी का दर्जा प्राप्त हो ताकि वे वेतन, भत्ते और अन्य सेवा लाभों के पात्र हो सकें।
- निगरानी व्यवस्था: हाईकोर्ट में नियुक्त कोर्ट मैनेजर रजिस्ट्रार जनरल के अधीन कार्य करेंगे और जिला न्यायालयों में नियुक्त मैनेजर संबंधित रजिस्ट्रार या अधीक्षक के अधीन रहेंगे।
- कार्य की अस्पष्टता नहीं हो: कोर्ट मैनेजरों की भूमिकाएं रजिस्ट्रारों से अलग और स्पष्ट रूप से परिभाषित हों।
- उपयुक्तता परीक्षा द्वारा नियमितीकरण: संविदा या अस्थायी रूप से कार्यरत सभी कोर्ट मैनेजरों को उपयुक्तता परीक्षा पास करने पर नियमित किया जाएगा, जिसकी व्यवस्था बनाए गए नियमों में होगी।
- पिछली सेवा की गिनती: नियमित किए गए कोर्ट मैनेजरों को प्रारंभिक नियुक्ति की तिथि से सेवा निरंतरता दी जाएगी ताकि वे अंतिम सेवा लाभों के पात्र बन सकें, हालांकि पिछली अवधि का कोई वेतन एरियर नहीं मिलेगा।
- समयसीमा: राज्य सरकार की स्वीकृति प्राप्त होने के तीन माह के भीतर नियमितीकरण की प्रक्रिया पूरी की जाए।
- उत्तरदायित्व: सभी हाईकोर्टों के रजिस्ट्रार जनरल और राज्य सरकारों के मुख्य सचिवों को निर्देशों की अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराया गया है।
- पदोन्नति एवं एसीपी योजना: हाईकोर्ट और राज्य सरकारें कोर्ट मैनेजरों के लिए पदोन्नति मार्ग या आश्वस्त कैरियर प्रगति (ACP) योजना प्रदान करने पर विचार करें।