तमिलनाडु के पुदुकोट्टई जिले के वडाकाडू गांव में मंदिर उत्सव के दौरान हुई जातीय हिंसा पर समय पर कार्रवाई न करने को लेकर मद्रास हाईकोर्ट ने जिला प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने 4 से 7 मई के बीच की सीसीटीवी फुटेज और अन्य सबूत अदालत में पेश करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति पी. वेलमुरुगन और न्यायमूर्ति के. के. रामकृष्णन की खंडपीठ ने टिप्पणी की कि प्रशासनिक पद “सिर्फ सफेदपोश नौकरी” नहीं होते और यह गलत है कि अधिकारी केवल शिकायत दर्ज होने पर ही कार्रवाई करें। पीठ ने कहा, “अगर कलेक्टर वेश बदलकर प्रभावित स्थान पर जाकर स्थिति की समीक्षा करते, तो सच्चाई सामने आ जाती।”
यह टिप्पणियां तिरुमनांजेरी निवासी एस. शन्मुगम द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान आईं। याचिका में आरोप लगाया गया था कि वडाकाडू मरियम्मन मंदिर उत्सव के दौरान अनुसूचित जाति (एससी) समुदाय के लोगों पर हमला किया गया और उनके घरों में आग लगा दी गई। शन्मुगम ने यह भी आरोप लगाया कि कई लोग घायल हुए और पुलिस ने असली दोषियों की गिरफ्तारी नहीं की।
याचिका में अदालत से यह अनुरोध किया गया कि उपलब्ध वीडियो और सीसीटीवी फुटेज के आधार पर जांच कराई जाए, सभी दोषियों को गिरफ्तार किया जाए और पीड़ितों को अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत मुआवजा दिया जाए।
अदालत में पुदुकोट्टई की जिला कलेक्टर अरुणा और पुलिस अधीक्षक अभिषेक गुप्ता भी उपस्थित रहे। प्रशासन ने अदालत को सूचित किया कि पीड़ितों को अंतरिम राहत के तौर पर 8.75 लाख रुपये वितरित किए जा चुके हैं और जिनके घर जलाए गए, उनके लिए नए घर बनाए जाएंगे। अधिकारियों ने यह भी बताया कि शांति वार्ता के बाद अब सभी समुदायों के लोगों को मंदिर में पूजा की अनुमति है।
अदालत ने मामले की निगरानी जारी रखने की बात कही है और प्रशासन को अगली सुनवाई में मांगे गए साक्ष्य प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।