पूर्व बिहार मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व विधायक मुन्ना शुक्ला की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के पूर्व विधायक और अपराधी से नेता बने विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला को पूर्व राजद मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की 1998 में पटना में हुई हत्या के चर्चित मामले में सुनाई गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है।

पूर्व प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना तथा न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने मुन्ना शुक्ला और सह-दोषी मन्तु तिवारी की सजा के खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिकाएं खारिज कर दीं। सुप्रीम कोर्ट ने 6 मई को दिए गए अपने आदेश (हाल ही में अपलोड किया गया) में कहा, “हमें 3 अक्टूबर, 2024 के फैसले की पुनर्विचार याचिका में कोई उचित आधार या कारण नहीं दिखता।” कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की खुले अदालत में सुनवाई की मांग भी अस्वीकार कर दी।

3 अक्टूबर, 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने शुक्ला और तिवारी को दोषी ठहराते हुए पटना हाईकोर्ट के 2014 के फैसले को आंशिक रूप से पलट दिया था, जिसमें सभी आरोपियों को बरी कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों दोषियों को 15 दिनों के भीतर आत्मसमर्पण कर सजा काटने का आदेश दिया।

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इसके अलावा, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 302 (हत्या) और धारा 34 (सामूहिक इरादा) के तहत दोनों पर 20,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। IPC की धारा 307 (हत्या का प्रयास) और धारा 34 के तहत पांच वर्ष का अतिरिक्त कारावास और 20,000 रुपये का अलग से जुर्माना भी लगाया गया।

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हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए पूर्व सांसद सुरजभान सिंह समेत पांच अन्य आरोपियों को बरी करने के हाईकोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा।

बृज बिहारी प्रसाद, जो एक प्रभावशाली ओबीसी नेता और पूर्व भाजपा सांसद रमा देवी के पति थे, की 13 जून, 1998 को कुख्यात अपराधी श्री प्रकाश शुक्ला द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। बाद में श्री प्रकाश शुक्ला को उत्तर प्रदेश पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने एक मुठभेड़ में मार गिराया था।

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा, “धारा 302 और धारा 34 IPC के तहत मन्तु तिवारी और विजय कुमार शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला पर बृज बिहारी प्रसाद और उनके अंगरक्षक लक्ष्मेश्वर साहू की हत्या का आरोप संदेह से परे प्रमाणित हुआ है।” हत्या के प्रयास का आरोप भी साबित पाया गया।

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यह मामला लंबे समय तक चला और इसमें कई उतार-चढ़ाव आए। फरवरी 1998 में मोतिहारी लोकसभा सीट पर पुनः मतदान से एक दिन पहले समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी और रमा देवी के राजनीतिक प्रतिद्वंदी देवेंद्र नाथ दुबे की भी हत्या कर दी गई थी। उस मामले में भी बृज बिहारी प्रसाद समेत अन्य को आरोपी बनाया गया था।

इस हत्या की जांच 7 मार्च, 1999 को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को सौंपी गई थी। CBI ने आरोप लगाया था कि यह साजिश पटना की बेउर जेल में रची गई थी, जिसमें सुरजभान सिंह, मुन्ना शुक्ला, लल्लन सिंह और राम निरंजन चौधरी शामिल थे।

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मामले के दौरान दो अन्य आरोपी, भूपेंद्र नाथ दुबे (मन्तु तिवारी के चाचा) और कैप्टन सुनील सिंह की मृत्यु हो गई। पटना हाईकोर्ट ने 24 जुलाई, 2014 को सभी आरोपियों को बरी कर दिया था, जबकि निचली अदालत ने 12 अगस्त, 2009 को सभी को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अब बिहार के इस बहुचर्चित राजनीतिक हत्या मामले का अंतिम समाधान हो गया है।

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