महिला के नाम पर पति द्वारा फर्ज़ी याचिका दाखिल कर तलाक का आधार तैयार करने के आरोप पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस जांच के आदेश दिए

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महिला की शिकायत पर पुलिस जांच के आदेश दिए हैं, जिसमें उसने आरोप लगाया कि उसके नाम से उसकी जानकारी या सहमति के बिना एक फर्ज़ी याचिका दाखिल की गई, जिसमें दावा किया गया कि वह और एक अन्य पुरुष एक विवाहित दंपत्ति हैं जिन्हें परिवार से खतरा है।

पीठ और न्यायिक टिप्पणी
यह आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने सोमवार को पारित किया। उन्होंने टिप्पणी की, “ऐसा प्रतीत होता है कि न्यायालय के समक्ष एक कपटपूर्ण कृत्य किया गया है ताकि किसी स्वार्थपूर्ण उद्देश्य की प्राप्ति की जा सके।” उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रकार की धोखाधड़ी बिना किसी ऐसे व्यक्ति की संलिप्तता के नहीं हो सकती जो विधिक प्रक्रियाओं से भलीभांति परिचित हो।

मामले की पृष्ठभूमि
विवादित याचिका पिछले वर्ष दाखिल की गई थी, जिसमें एक महिला और एक पुरुष को पति-पत्नी बताते हुए उनके लिए सुरक्षा की मांग की गई थी। हालांकि, अप्रैल 2024 में वह महिला अपने भाई के साथ अदालत में उपस्थित हुई और स्पष्ट किया कि उसने न तो याचिका पर हस्ताक्षर किए थे और न ही शपथपत्र पर। उसने यह भी बताया कि उसका आधार कार्ड दुरुपयोग किया गया और वह याचिका में वर्णित पुरुष से विवाहित नहीं है।

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महिला ने कहा कि वह पहले से किसी अन्य पुरुष से विवाहित है, उसके दो बच्चे हैं, और वह वर्तमान में वैवाहिक विवाद के चलते अपने पिता के घर रह रही है। उसने यह भी आशंका जताई कि यह याचिका उसके पति ने एक वकील के साथ मिलकर दाखिल कराई ताकि तलाक का आधार तैयार किया जा सके। वहीं, दूसरे याचिकाकर्ता ने भी इस याचिका के संबंध में कोई जानकारी होने से इनकार किया।

अदालत की सख्त टिप्पणी
न्यायमूर्ति दिवाकर ने टिप्पणी की:
“यह मामला निष्पक्ष और विस्तृत जांच की मांग करता है क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि न्यायालय के समक्ष धोखाधड़ी का प्रयास किया गया है। यदि षड्यंत्रकर्ता अपने इरादों में सफल हो जाते, तो यह न केवल न्याय व्यवस्था का उपहास होता, बल्कि आपराधिक न्याय प्रणाली पर कलंक होता और विधि के शासन में जनता के विश्वास को गंभीर रूप से नुकसान पहुँचाता।”
अदालत ने कहा कि ऐसे प्रयासों को “पूर्ण सतर्कता और दृढ़ता” के साथ रोका जाना चाहिए।

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वकील और अन्य की भूमिका
इस याचिका में अधिवक्ता श्री लल्लन चौबे का नाम था, जिन्हें कोर्ट ने कारण बताओ नोटिस जारी किया था। उन्होंने कहा कि याचिका उन्होंने दाखिल नहीं की और उनका नाम और हस्ताक्षर जालसाजी से प्रयोग किए गए। शपथपत्र की प्रक्रिया में संलिप्त ओथ कमिश्नर को भी लापरवाही का दोषी पाया गया।

इस बीच, महिला के पति ने एक प्रतिशपथपत्र दाखिल कर आरोप लगाया कि उसकी पत्नी दूसरे याचिकाकर्ता के साथ अवैध संबंध में है और वैवाहिक घर लौटने से इनकार कर चुकी है।

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अदालती निर्देश
इन परस्पर विरोधी और गंभीर आरोपों के मद्देनज़र, न्यायालय ने प्रयागराज के पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया कि वे प्रारंभिक जांच करें और यदि कोई संज्ञेय अपराध बनता है तो तत्काल एफआईआर दर्ज की जाए। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि जांच निष्पक्ष, स्वतंत्र और बिना किसी प्रभाव के की जाए तथा फॉरेंसिक और वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग कर सच्चाई सामने लाई जाए।

न्यायमूर्ति दिवाकर ने यह भी निर्देश दिया कि पुलिस आयुक्त स्वयं इस जांच की निगरानी करें और प्रत्येक तिमाही में इसकी प्रगति रिपोर्ट मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रयागराज को सौंपें।

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अंत में, अदालत ने सुरक्षा याचिका खारिज कर दी और साथ ही यह सुनिश्चित किया कि न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग की गंभीरता से जांच हो।

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