सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र सरकार को कड़े शब्दों में निर्देश दिया कि वह सड़क दुर्घटना पीड़ितों के लिए लंबे समय से लंबित कैशलेस इलाज योजना को “अक्षरशः और पूरी भावना से” लागू करे। इस योजना के तहत प्रत्येक व्यक्ति को प्रति दुर्घटना अधिकतम ₹1.5 लाख तक के मुफ्त इलाज का अधिकार मिलेगा।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने केंद्र को आदेश दिया कि वह अगस्त 2025 के अंत तक एक हलफनामा दाखिल कर योजना के लाभार्थियों की संख्या और उसके कार्यान्वयन की स्थिति का ब्यौरा दे। पीठ ने कहा, “हम केंद्र सरकार को निर्देश देते हैं कि इस योजना को पूरी तरह और अक्षरशः लागू किया जाए।”
यह योजना सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा अधिसूचित की गई है और 5 मई से प्रभावी है। सरकारी गजट अधिसूचना के अनुसार, किसी भी सड़क पर किसी भी मोटर वाहन के कारण हुई सड़क दुर्घटना का कोई भी पीड़ित इस योजना के तहत कैशलेस इलाज का हकदार होगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह हस्तक्षेप उस समय आया है जब केंद्र सरकार 8 जनवरी 2024 को जारी अदालत के निर्देश का अनुपालन करने में विफल रही। उस आदेश में अदालत ने सरकार को दुर्घटना के बाद के “गोल्डन ऑवर” यानी पहले एक घंटे के भीतर मुफ्त इलाज की योजना तैयार करने को कहा था, ताकि त्वरित चिकित्सा सहायता से जान बचाई जा सके।
अदालत ने केंद्र की निष्क्रियता पर नाराजगी जताई। पीठ ने कहा, “आप अवमानना में हैं। आपने समय बढ़ाने का भी प्रयास नहीं किया। यह क्या चल रहा है? आपको अपने ही कानूनों की परवाह नहीं है। क्या आप वास्तव में आम आदमी के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं?”
पीठ ने तेजी से हो रहे राजमार्ग विकास और दुर्घटना पीड़ितों के लिए पर्याप्त आपातकालीन चिकित्सा व्यवस्था की कमी के बीच विरोधाभास को भी रेखांकित किया। अदालत ने सरकार को मोटर वाहन अधिनियम और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार की रक्षा की अपनी कानूनी जिम्मेदारी की याद दिलाई।
वर्तमान व्यवस्था के तहत, सामान्य बीमा कंपनियों को इलाज का खर्च वहन करना होगा, जिसमें गोल्डन ऑवर का इलाज भी शामिल है। केंद्र ने अदालत में ₹1.5 लाख की अधिकतम सीमा और सात दिनों तक के इलाज का प्रस्तावित मसौदा पेश किया, लेकिन याचिकाकर्ता के वकील ने इसे अपर्याप्त बताया।
जनरल इंश्योरेंस काउंसिल (GIC) को हिट एंड रन मामलों में मुआवजा भुगतान और दस्तावेजों के ऑनलाइन पोर्टल के विकास की जिम्मेदारी भी दी गई है। अदालत ने नोट किया कि 31 जुलाई 2024 तक दस्तावेजों की कमी के कारण 921 दावे लंबित हैं। पीठ ने GIC से इन दावों का जल्द समाधान करने और पीड़ितों से समन्वय बढ़ाने का आग्रह किया।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को स्पष्ट रूप से चेतावनी दी है कि इस महत्वपूर्ण कल्याणकारी योजना के कार्यान्वयन में अब और देरी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इससे जानें जा सकती हैं।