‘देश संकट में हो तो सुप्रीम कोर्ट तटस्थ नहीं रह सकता’: सीजेआई डेज़िग्नेट जस्टिस बी.आर. गवई ने पहलगाम आतंकी हमले की कड़ी निंदा की

नव-नियुक्त मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) बनने जा रहे जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने रविवार को पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले की कठोर शब्दों में निंदा की, जिसमें 26 लोगों की जान चली गई। उन्होंने दो टूक कहा कि देश के संकट के समय सुप्रीम कोर्ट अलग-थलग नहीं रह सकता।

जस्टिस गवई ने कहा, “जब देश संकट में होता है तो सुप्रीम कोर्ट तटस्थ नहीं रह सकता, हम भी देश का हिस्सा हैं।” यह बयान उन्होंने 14 मई को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने से पहले मीडिया को संबोधित करते हुए दिया।

सुप्रीम कोर्ट में दो मिनट का मौन, ऐतिहासिक कदम

हमले के बाद, जस्टिस गवई ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना—जो उस समय देश में नहीं थे—की अनुमति से सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण पीठ की बैठक बुलाई और संपूर्ण अदालत परिसर में दो मिनट का मौन रखने की घोषणा की। यह एक ऐतिहासिक पहल थी, क्योंकि अब तक सुप्रीम कोर्ट में केवल 30 जनवरी (महात्मा गांधी की पुण्यतिथि) पर ही दो मिनट का मौन रखा जाता रहा है।

युद्ध और शांति पर टिप्पणी

‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्धविराम पर टिप्पणी करते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि युद्ध से किसी को लाभ नहीं होता। उन्होंने कहा, “युद्ध के क्या परिणाम होते हैं, यह हम पहले ही देख चुके हैं। यूक्रेन में पिछले तीन वर्षों से युद्ध चल रहा है, जहां 50,000 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। ग़ाज़ा में चल रहा संघर्ष उससे भी अधिक भयावह है। जो कुछ होता है, वह सबके लिए होता है।” उन्होंने युद्धविराम का स्वागत किया और कहा कि इसकी अधिक जानकारी सोमवार दोपहर तक सामने आ जाएगी।

न पद की लालसा, न राजनीति में रुचि

मीडिया से बातचीत में जस्टिस गवई ने स्पष्ट किया कि उन्हें न कोई राजनीतिक आकांक्षा है और न ही वे सेवानिवृत्ति के बाद किसी पद को स्वीकार करेंगे। उन्होंने कहा, “कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है। मैंने तय किया है कि सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद नहीं लूंगा। मुख्य न्यायाधीश के पद से नीचे कोई भी पद मेरे लिए उपयुक्त नहीं है, चाहे वह राज्यपाल का पद ही क्यों न हो।”

जस्टिस गवई महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव से आते हैं और दिवंगत आर.एस. गवई—पूर्व बिहार व केरल के राज्यपाल तथा अंबेडकरवादी नेता—के पुत्र हैं। वे आज भी अपनी जड़ों से गहराई से जुड़े हुए हैं।

न्यायिक स्वतंत्रता और हालिया विवाद

जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे की न्यायपालिका पर टिप्पणियों के बारे में सवाल किया गया, तो जस्टिस गवई ने शालीनता से कहा, “जो सर्वोच्च है, वह सबको पता है। संविधान ही सर्वोच्च है।”

जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास से कथित नकदी बरामदगी के मामले में उन्होंने बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है और यह मामला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजा गया है। उन्होंने एफआईआर के विषय में टिप्पणी करने से इनकार किया और कहा कि प्रक्रिया का पालन किया जा रहा है।

READ ALSO  घरेलू हिंसा अधिनियम सभी महिलाओं की रक्षा करता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो: सुप्रीम कोर्ट ने पुष्टि की

न्यायिक यात्रा और योगदान

24 नवंबर 1960 को जन्मे जस्टिस गवई ने 1985 में बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ में वकालत शुरू की। वे सरकारी वकील और लोक अभियोजक भी रहे। वर्ष 2003 में उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 2005 में वे स्थायी न्यायाधीश बने। 24 मई 2019 को वे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त हुए।

अपनी छह वर्षों की सर्वोच्च न्यायालयीय सेवा में जस्टिस गवई ने 700 से अधिक पीठों में भाग लिया और संविधान, सिविल, क्रिमिनल, कॉमर्शियल और पर्यावरणीय मामलों में महत्वपूर्ण निर्णय दिए।

READ ALSO  उपभोक्ता अदालत ने ब्रिटिश एयरवेज को यात्री को रिफंड और मुआवजा देने का आदेश दिया

वे 23 नवंबर 2025 को सेवानिवृत्त होंगे।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles