सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विकलांगता पेंशन के दावों की समीक्षा करते समय सशस्त्र बलों के जवानों के लिए एक उदार और लाभकारी दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है, विशेष रूप से मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों जैसे कि स्किज़ोफ्रेनिया के मामलों में।
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने 7 मई को दिए गए एक निर्णय में एक ऐसे सैनिक को विकलांगता पेंशन देने का आदेश दिया, जिसे चिकित्सा आधार पर सेवा से मुक्त किया गया था। कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड की राय में कारणों की अनुपस्थिति को लेकर कड़ी आलोचना की और कहा कि पेंशन निर्णयों में यह एक निर्णायक और आवश्यक तत्व होता है।
पीठ ने कहा, “यदि किसी सैनिक को सेवा से बाहर कर दिया जाता है या उसे विकलांगता पेंशन से वंचित किया जाता है, और यह फैसला बिना कारणों वाले मेडिकल अभिमत पर आधारित है, तो यह उस कार्रवाई की जड़ पर प्रहार करता है और कानून की दृष्टि में टिक नहीं सकता।”
याचिकाकर्ता ने नवंबर 1988 में भारतीय सेना में सिपाही के रूप में भर्ती ली थी और स्किज़ोफ्रेनिया के निदान के बाद नौ साल की सेवा के उपरांत मई 1998 में उन्हें सेवा से मुक्त कर दिया गया। मेडिकल बोर्ड ने यह मानसिक स्थिति “जन्मजात” बताते हुए इसे सैन्य सेवा से उत्पन्न या उससे बढ़ी हुई नहीं माना।
सैनिक ने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण द्वारा पेंशन से इनकार किए जाने को चुनौती दी और तर्क दिया कि मेडिकल बोर्ड ने अपने निष्कर्षों का कोई स्पष्ट आधार नहीं दिया। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात से सहमति जताई और कहा कि रिपोर्ट में नियमों के तहत अपेक्षित तर्कों की कमी थी।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि विकलांगता पेंशन के प्रावधान मूल रूप से लाभकारी हैं और उनका उद्देश्य कठिन परिस्थितियों में देश की सेवा करने वाले सैनिकों का समर्थन करना है। मानसिक बीमारी से संबंधित मामलों में, जहां सैनिक स्वयं सेवा और बीमारी के बीच संबंध साबित करने में कठिनाई झेलते हैं, वहां उदार व्याख्या आवश्यक है।
कोर्ट ने यह भी कहा, “जहां सैनिक ने स्वयं सेवा त्याग के लिए आवेदन नहीं दिया है, बल्कि उसे प्राधिकरण द्वारा सेवा से मुक्त किया गया है, वहां विकलांगता और पेंशन अस्वीकृति का आधार साबित करने की जिम्मेदारी प्राधिकरण पर होती है।”
न्यायाधीशों ने यह भी उल्लेख किया कि चूंकि अब लगभग 27 वर्ष बीत चुके हैं, इसलिए मामले को फिर से मेडिकल बोर्ड को भेजना न्यायसंगत नहीं होगा। अतः अदालत ने सेवा समाप्ति को बरकरार रखते हुए अधिकारियों को याचिकाकर्ता को विकलांगता पेंशन सभी अनुमेय लाभों सहित देने का निर्देश दिया।
हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि पेंशन की पिछली देय राशि केवल पिछले तीन वर्षों तक सीमित रहेगी और पूरे सेवा समाप्ति काल के लिए कोई बकाया भुगतान नहीं दिया जाएगा।