विश्वसनीय हो तो पीड़िता की अकेली गवाही के आधार पर भी हो सकती है सजा: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की खंडपीठ — जिसमें मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार वर्मा शामिल थे — ने सात वर्षीय बालिका के अपहरण और बलात्कार के मामले में दोषी रितेश उर्फ पप्पू मांझी की आपराधिक अपील खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि यदि पीड़िता की गवाही विश्वसनीय हो और विश्वास पैदा करती हो, तो यौन अपराध के मामले में मात्र उसी के आधार पर दोषसिद्धि दी जा सकती है। यह सिद्धांत भारतीय दंड संहिता और ‘पॉक्सो’ अधिनियम दोनों के अंतर्गत लागू होता है।

मामले की पृष्ठभूमि

दिनांक 16 मार्च 2022 को सात वर्षीय बालिका अकेले एक दुकान पर गई थी और घर लौटने पर घबराई हुई थी। उसने अपनी मां को बताया कि “पप्पू मामा” उसे जबरदस्ती एक कमरे में ले गए, उसके कपड़े उतारे, उसकी गुप्तांगों में उंगली डाली और उसे अपने गुप्तांग को मुंह में डालने के लिए मजबूर किया। आरोपी ने उसे धमकी दी कि वह किसी को कुछ न बताए।

बाद में, पीड़िता ने आरोपी की पहचान पड़ोस की एक शादी में की। उसकी मां ने 3 अप्रैल 2022 को थाने में शिकायत दर्ज कराई। इस पर आरोपी के विरुद्ध धारा 376AB आईपीसी और पॉक्सो अधिनियम की धारा 5(म) और 6 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई।

फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालय (पॉक्सो), कोरबा के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने 9 अक्टूबर 2023 को आरोपी को दोषी ठहराया और निम्नलिखित सजाएं सुनाईं:

  • धारा 366 आईपीसी: 10 वर्ष का कठोर कारावास और ₹500 जुर्माना (डिफॉल्ट में 6 माह का कारावास)
  • धारा 376AB आईपीसी / धारा 6 पॉक्सो अधिनियम: प्राकृतिक जीवनकाल तक आजीवन कारावास और ₹500 जुर्माना (डिफॉल्ट में 6 माह का कारावास)

सभी सजाएं साथ-साथ चलने का आदेश दिया गया।

अपीलकर्ता की दलीलें

  • पीड़िता की उम्र निर्णायक रूप से सिद्ध नहीं हुई; कोई ऑसिफिकेशन परीक्षण नहीं कराया गया।
  • पीड़िता की गवाही में विरोधाभास थे और कोई पुष्टिकरण नहीं था।
  • ट्रायल कोर्ट ने केवल एक गवाह के आधार पर सजा सुना दी, जो त्रुटिपूर्ण था।

राज्य का पक्ष

  • पीड़िता के जन्म प्रमाणपत्र से स्पष्ट है कि उसकी जन्मतिथि 24 जून 2014 है, जिससे यह सिद्ध होता है कि वह घटना के समय 7 वर्ष 8 माह की थी।
  • उसकी गवाही लगातार, स्पष्ट और आत्मविश्वासपूर्ण थी, जिसे समर्थन की आवश्यकता नहीं थी।
  • दोषसिद्धि स्थापित न्यायिक सिद्धांतों पर आधारित थी।
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न्यायालय का विश्लेषण

1. पीड़िता की उम्र:
कोर्ट ने Jarnail Singh बनाम हरियाणा राज्य, (2013) 7 SCC 263 और किशोर न्याय नियमावली के नियम 12 पर भरोसा करते हुए कहा:

“पीड़िता की जन्मतिथि 24.06.2014 को मानने से इनकार करने का कोई कारण नहीं है।”
इस प्रकार, अपराध की तिथि पर पीड़िता की उम्र 7 वर्ष 8 माह थी।

2. अपहरण की दोषसिद्धि:
कोर्ट ने S. Varadarajan बनाम मद्रास राज्य, AIR 1965 SC 942 का हवाला देते हुए कहा:

“यह पर्याप्त है कि अभियोजन यह स्थापित कर दे कि नाबालिग के पिता की सुरक्षा से निकलने से पहले अभियुक्त ने उसे किसी भी अवस्था में प्रेरित या राजी किया था।”
अतः धारा 366 के तहत दोषसिद्धि सही मानी गई।

3. यौन उत्पीड़न:
कोर्ट ने माना कि पीड़िता द्वारा बलात्कारी कृत्यों का वर्णन:

  • तुरंत किया गया,
  • जिरह में निष्कंप रहा,
  • मां की गवाही से पुष्ट हुआ।

4. अकेली गवाही पर्याप्त:
कोर्ट ने निम्न निर्णयों पर भरोसा किया:

  • Ganesan बनाम राज्य, (2020) 10 SCC 573
  • State (NCT of Delhi) बनाम पंकज चौधरी, (2019) 11 SCC 575
  • Sham Singh बनाम हरियाणा राज्य, (2018) 18 SCC 34
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और दोहराया:

“पीड़िता की गवाही महत्वपूर्ण होती है और जब तक कोई ठोस कारण न हो जिससे उसके बयान की पुष्टि आवश्यक हो, तब तक अदालत को केवल उसकी गवाही पर ही भरोसा करते हुए दोषसिद्धि करने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए।”

अंतिम निर्णय

कोर्ट ने अपील खारिज करते हुए कहा:

“अभियोजन पक्ष ने संदेह से परे अपना मामला सिद्ध किया है और ट्रायल कोर्ट ने किसी विधिक या तथ्यात्मक त्रुटि की नहीं की है।”


कोर्ट ने निर्देश दिया कि अपीलकर्ता अपनी सजा जारी रखे और उसे विधिक सहायता के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में अपील के अधिकार की जानकारी दी जाए।

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