क्या भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट पंचाट द्वारा पारित निर्णय को संशोधित कर सकता है?

30 अप्रैल 2025 को दिए गए एक संविधान पीठ के निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने गायत्री बालासामी बनाम आईएसजी नोवासॉफ्ट टेक्नोलॉजीज लिमिटेड [सिविल अपील संख्याएं 2025 (@ एसएलपी (सिविल) सं. 15336–15337/2021)] में 4:1 के बहुमत से यह निर्णय दिया कि संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग सुप्रीम कोर्ट द्वारा पंचाट पुरस्कार को संशोधित करने के लिए किया जा सकता है, लेकिन यह शक्ति सीमित परिस्थियों में ही और अत्यंत सावधानी से प्रयोग की जानी चाहिए। यह बहुमत निर्णय मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा लिखा गया, जिसमें न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, संजय कुमार, और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह सहमत थे। न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन ने इस विशेष बिंदु पर असहमति व्यक्त की कि क्या अनुच्छेद 142 के तहत पंचाट निर्णय को संशोधित किया जा सकता है।

मामले की पृष्ठभूमि:
यह मामला भारतीय न्यायालयों द्वारा पंचाट निर्णयों को संशोधित करने की सीमाओं से संबंधित था। विभिन्न निर्णयों में इस पर विरोधाभासी राय सामने आई थी। इस संदर्भ में तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने पांच महत्वपूर्ण विधिक प्रश्नों को संविधान पीठ के पास भेजा, जिनमें एक यह भी था कि क्या अनुच्छेद 142 के अंतर्गत पंचाट पुरस्कार को संशोधित किया जा सकता है।

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इनमें प्रमुख प्रश्न था:

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“क्या संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट पंचाट द्वारा पारित निर्णय को संशोधित कर सकता है?”

बहुमत का दृष्टिकोण:
बहुमत के निर्णय में यह स्वीकार किया गया कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी McDermott International Inc. v. Burn Standard Co. Ltd. तथा Ssangyong Engineering and Construction Co. Ltd. v. NHAI जैसे मामलों में अनुच्छेद 142 के तहत पंचाट पुरस्कार में ब्याज दर आदि में संशोधन किया है ताकि दीर्घकालिक मुकदमेबाजी से बचा जा सके।

हालांकि, न्यायालय ने इस शक्ति के सीमाओं को स्पष्ट करते हुए कहा:

“जहां तक संविधान के अनुच्छेद 142 की प्रासंगिकता का प्रश्न है, इस शक्ति का प्रयोग अत्यंत सावधानी और विवेक से किया जाना चाहिए।”

न्यायालय ने आगे कहा:

“अनुच्छेद 142 इस न्यायालय को किसी भी लंबित विवाद में पूर्ण न्याय करने की शक्ति प्रदान करता है। इस शक्ति का प्रयोग 1996 अधिनियम के पीछे की मौलिक भावना और उद्देश्यों के अनुरूप होना चाहिए, न कि उसके विरोध में।”

Shilpa Sailesh बनाम वरुण श्रीनिवासन [(2023) 14 SCC 231] में संविधान पीठ द्वारा दिए गए निर्णय का उल्लेख करते हुए न्यायालय ने उद्धृत किया:

“…अनुच्छेद 142(1) के तहत इस न्यायालय को प्रदत्त पूर्ण और विवेकपूर्ण शक्ति, जो प्रथम दृष्टया असीम प्रतीत होती है, सार्वजनिक नीति के सामान्य और विशिष्ट विचारों से सीमित और संयमित है…”

और जोड़ा कि:

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“जब इस शक्ति का प्रयोग किया जाए, तो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उसका प्रभाव पंचाट निर्णय को उसके गुण-दोष के आधार पर फिर से लिखने जैसा न हो। हालांकि, यदि विवाद को समाप्त करने के लिए इसकी आवश्यकता हो, तो यह शक्ति प्रयोग में लाई जा सकती है।”

न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन का असहमति मत:
न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन ने इस मुद्दे पर असहमति प्रकट की कि सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत पंचाट पुरस्कार में संशोधन कर सकता है। उन्होंने कहा कि यह संशोधन 1996 अधिनियम की सीमित न्यायिक समीक्षा की अवधारणा के विपरीत होगा और इससे न्यायालय के अधिकारों का अनावश्यक विस्तार होगा। उनके अनुसार, अनुच्छेद 142 का प्रयोग ऐसे मामलों में नहीं किया जाना चाहिए जहां इससे पंचाट प्रक्रिया की स्वतंत्रता और वैधानिक ढांचा बाधित होता हो।

निष्कर्ष:
चार-एक के बहुमत से संविधान पीठ ने यह निर्णय दिया कि सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 के तहत पंचाट पुरस्कार को संशोधित कर सकता है, लेकिन यह शक्ति केवल असाधारण परिस्थितियों में और न्यायोचित समाधान सुनिश्चित करने के लिए सीमित रूप से ही प्रयोग की जानी चाहिए।

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न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा:

“अनुच्छेद 142 लागू होता है, किन्तु इस शक्ति का प्रयोग अत्यधिक सावधानी और अनुच्छेद 142 की संवैधानिक सीमाओं के भीतर ही किया जाना चाहिए, जैसा कि हमारे निर्णय के खंड XII में प्रतिपादित किया गया है।”

अतः, जबकि अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को “पूर्ण न्याय” करने की असाधारण शक्ति प्रदान करता है, परंतु पंचाट पुरस्कारों को संशोधित करने में इसका प्रयोग सीमित, विवेकपूर्ण और विधिक ढांचे के अनुरूप होना आवश्यक है। न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने इस विस्तार का विरोध करते हुए एक सैद्धांतिक असहमति दर्ज की।

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