जेनेरिक प्रिस्क्रिप्शन अनिवार्य करने से फार्मा कंपनियों द्वारा डॉक्टरों को दी जाने वाली रिश्वत पर लगाम लग सकती है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मौखिक रूप से टिप्पणी की कि यदि डॉक्टरों को केवल जेनेरिक दवाएं ही लिखने के लिए विधिक रूप से बाध्य किया जाए, तो फार्मा कंपनियों द्वारा महंगी ब्रांडेड दवाओं के प्रचार हेतु डॉक्टरों को दी जाने वाली कथित घूस की समस्या काफी हद तक समाप्त हो सकती है।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की खंडपीठ इस विषय पर दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें यह आरोप लगाया गया है कि दवा कंपनियां व्यवसाय बढ़ाने और महंगी व अनावश्यक दवाओं को लिखवाने के लिए डॉक्टरों को घूस देती हैं।

याचिका में फार्मा मार्केटिंग के लिए बाध्यकारी आचार संहिता की मांग

याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि जब तक ‘यूनिफॉर्म कोड ऑफ़ फ़ार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिस’ (UCPMP) को विधायी रूप न मिल जाए, तब तक सुप्रीम कोर्ट कुछ दिशानिर्देश जारी करे, जिससे दवा कंपनियों की अनैतिक विपणन रणनीतियों को नियंत्रित किया जा सके।

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वैकल्पिक रूप से, याचिकाकर्ता चाहते हैं कि वर्तमान “स्वैच्छिक कोड” को ही कुछ आवश्यक संशोधनों के साथ न्यायालय बाध्यकारी बना दे, जिससे यह संविधान के अनुच्छेद 32, 141, 142 और 144 के तहत सभी अधिकारियों/न्यायालयों पर लागू हो।

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याचिकाकर्ता संख्या 1 ‘फेडरेशन ऑफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रजेंटेटिव्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ (FMRAI) है, जो 1963 में ट्रेड यूनियनों अधिनियम, 1926 के अंतर्गत पंजीकृत एक राष्ट्रीय स्तर की यूनियन है। याचिकाकर्ता संख्या 2 यूनियन के सचिव हैं और याचिकाकर्ता संख्या 3 ‘जन स्वास्थ्य अभियान’ के राष्ट्रीय समन्वयक हैं।

न्यायालय ने राजस्थान मॉडल का दिया उदाहरण

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने पूछा: “क्या कोई वैधानिक प्रावधान है कि डॉक्टर केवल जेनेरिक दवाएं ही लिखें और किसी विशेष ब्रांड का नाम न लिखें?”

जब याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि ऐसा कोई वैधानिक प्रावधान नहीं है और केवल एक स्वैच्छिक कोड मौजूद है, तब न्यायमूर्ति मेहता ने बताया कि राजस्थान में ऐसा एक निर्देश पहले ही लागू किया जा चुका है।

उन्होंने कहा, “राजस्थान में अब एक कार्यपालक आदेश है कि प्रत्येक डॉक्टर को केवल जेनेरिक दवाएं ही लिखनी होंगी। वे किसी कंपनी का नाम नहीं लिख सकते। इससे काफी हद तक समस्या सुलझ सकती है।”

उन्होंने आगे जोड़ा, “सोचिए, अगर ऐसा ही निर्देश पूरे देश में लागू कर दिया जाए, तो इस तरह की सारी समस्याएं स्वतः समाप्त हो जाएंगी।”

उत्तरदाता की ओर से मेडिकल काउंसिल के निर्देशों का हवाला

उत्तरदाता की ओर से बताया गया कि भारतीय मेडिकल काउंसिल द्वारा डॉक्टरों को केवल जेनेरिक दवाएं लिखने के निर्देश दिए गए हैं। हालांकि, याचिकाकर्ता का कहना था कि ये केवल दिशानिर्देश हैं और बाध्यकारी नहीं हैं।

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पीठ को सूचित किया गया कि केंद्र सरकार ने एक उच्च स्तरीय समिति गठित की है, लेकिन याचिकाकर्ताओं ने कहा कि समिति की अनुशंसाएं सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं।

न्यायालय ने इस विषय पर तत्काल कोई निर्णय नहीं दिया और इसे अगली सुनवाई के लिए 24 जुलाई 2025 को सूचीबद्ध कर दिया। पीठ ने संकेत दिया कि वह जेनेरिक दवाओं के संबंध में किसी प्रकार की वैधानिक बाध्यता पर विचार कर सकती है।

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