साक्षी की गवाही न होने पर भी एफआईआर और चार्जशीट के आधार पर मोटर दुर्घटना दावे में लापरवाही साबित मानी जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट


मीरा बाई एवं अन्य बनाम आईसीआईसीआई लोम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एवं अन्य में सुप्रीम कोर्ट ने 30 अप्रैल 2025 को एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए उस हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया जिसमें केवल इस आधार पर मुआवज़ा याचिका खारिज कर दी गई थी कि कोई प्रत्यक्षदर्शी गवाह पेश नहीं किया गया। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया एवं न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (Tribunal) के निर्णय को बहाल किया और कहा कि जब वाहन चालक के खिलाफ एफआईआर और चार्जशीट मौजूद है, तो लापरवाही को असिद्ध नहीं माना जा सकता।

प्रकरण की पृष्ठभूमि:
29 जनवरी 2015 को एक मोटरसाइकिल दुर्घटना में मृतक, जो वाहन के पीछे सवार था, की मृत्यु हो गई। उक्त मोटरसाइकिल प्रतिवादी संख्या 2 के स्वामित्व और संचालन में थी। मृतक के परिजनों द्वारा मुआवज़ा प्राप्त करने हेतु मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण में याचिका दायर की गई थी।

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दावा अधिकरण ने याचिकाकर्ताओं के पक्ष में निर्णय दिया था, जिसे बाद में हाईकोर्ट ने केवल इस आधार पर रद्द कर दिया कि दुर्घटना की पुष्टि हेतु कोई प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया।

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दलीलें और कार्यवाही:
वाहन चालक ने दावा अधिकरण के समक्ष लिखित वक्तव्य में यह स्वीकार किया कि दुर्घटना में उसकी कोई लापरवाही नहीं थी, किंतु उसने स्वयं गवाही देने के लिए कोई साक्ष्य नहीं दिया। दुर्घटना के बाद तुरंत दर्ज की गई एफआईआर में उसके खिलाफ लापरवाही का आरोप था और उसके विरुद्ध चार्जशीट भी दाखिल की गई थी।

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सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण:
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की दृष्टिकोण को अस्वीकार करते हुए स्पष्ट किया कि हर मामले में प्रत्यक्षदर्शी गवाह उपलब्ध हो, यह आवश्यक नहीं है। न्यायालय ने कहा:

“जहां तक प्रत्यक्षदर्शी गवाह की बात है, ऐसा गवाह सभी मामलों में उपलब्ध नहीं होगा। जब वाहन चालक के खिलाफ एफआईआर दर्ज है और चार्जशीट दायर हो चुकी है, तो यह नहीं कहा जा सकता कि लापरवाही सिद्ध नहीं हुई।”

इस आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने माना कि हाईकोर्ट का निर्णय गलत था।

निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए कहा:

“हम यह मानते हैं कि हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया जाना चाहिए और दावा अधिकरण का आदेश बहाल किया जाना चाहिए।”

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि मुआवज़े की राशि की समीक्षा नहीं की जा रही है क्योंकि याचिकाकर्ताओं द्वारा इस संबंध में कोई अपील दायर नहीं की गई थी। कोर्ट ने बीमा कंपनी को निर्देश दिया कि वह दावा अधिकरण द्वारा निर्धारित मुआवज़ा राशि को याचिका की प्रस्तुति की तिथि से 7% वार्षिक ब्याज सहित शीघ्र अदा करे।

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सभी लंबित आवेदनों का भी निस्तारण कर दिया गया।

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