ओडिशा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में यह स्पष्ट किया है कि व्यक्तिगत रूप से प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ताओं को वित्त अधिनियम, 1994 के तहत सेवा कर से छूट प्राप्त है, और ऐसे अधिवक्ताओं पर टैक्स लगाने की कार्रवाई अनुचित है। अदालत ने भुवनेश्वर के अधिवक्ता शिवानंद रे पर सेवा कर वसूली संबंधी नोटिस को रद्द कर दिया।
मुख्य न्यायाधीश हरीश टंडन और न्यायमूर्ति बी.पी. रथौड़ की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता एक व्यक्तिगत प्रैक्टिसिंग वकील हैं और उनके द्वारा दी गई कानूनी सेवाएं सेवा कर के दायरे में नहीं आतीं।
प्रकरण की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता शिवानंद रे, जो भुवनेश्वर में अधिवक्ता के रूप में कार्यरत हैं, ने 15 अप्रैल 2021 को जारी नोटिस को चुनौती दी थी, जो कि वित्त अधिनियम, 1994 की धारा 73 के अंतर्गत ₹2,14,600 सेवा कर की मांग के लिए जारी किया गया था (वित्त वर्ष 2015–16 हेतु)। इसके बाद 28 जनवरी 2025 को वसूली आदेश जारी हुआ, जिसमें ₹2,34,600 की पेनल्टी और ब्याज सहित कर की मांग की गई।
याचिकाकर्ता का तर्क था कि वे एक व्यक्तिगत कानूनी पेशेवर हैं और कानून के अनुसार सेवा कर से मुक्त हैं।
प्रतिवादी के तर्क
वित्त विभाग की ओर से वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता टी.के. सतपथी ने दलील दी कि याचिकाकर्ता के खिलाफ धारा 67, 68, 69 और 70 का उल्लंघन कर सेवा कर नियमों के तहत नोटिस जारी किया गया था। उन्होंने यह भी बताया कि याचिकाकर्ता ने न्यायिक प्रक्रिया में सहयोग नहीं किया, जिसके चलते 9 अगस्त 2024 को एकतरफा आदेश पारित हुआ और फिर वसूली की प्रक्रिया शुरू हुई।
अदालत का विश्लेषण
हाईकोर्ट ने 31 मार्च 2021 को W.P.(C) No. 27727 of 2020 में पारित अपने पूर्ववर्ती आदेश का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था:
“कोर्ट ने चिंता व्यक्त की थी कि प्रैक्टिसिंग वकीलों को ऐसे नोटिस के कारण उत्पीड़न का सामना नहीं करना चाहिए, जिनमें उन्हें सेवा कर या जीएसटी अदा करने के लिए कहा जाए, जबकि वे इससे छूट प्राप्त हैं, और उन्हें यह साबित करने के लिए बाध्य न किया जाए कि वे वकील हैं।”
इसके परिप्रेक्ष्य में, विभाग ने 9 अप्रैल 2021 और 15 अप्रैल 2021 को दिशानिर्देश जारी किए, जिनमें स्पष्ट किया गया कि अधिवक्ताओं या अधिवक्ताओं की साझेदारी फर्मों द्वारा दी गई कानूनी सेवाएं — जो गैर-व्यावसायिक इकाइयों या ₹10 लाख से कम टर्नओवर वाले व्यावसायिक इकाइयों को प्रदान की जाती हैं — सेवा कर से मुक्त हैं।
अदालत ने इन निर्देशों की पुनः पुष्टि करते हुए अधिकारियों को आपसी समन्वय बनाए रखने और गैर-ज़रूरी नोटिस जारी न करने की सलाह दी। कोर्ट ने कहा:
“यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि याचिकाकर्ता एक वकील हैं… अतः इस तथ्य और पहले जारी किए गए निर्देशों को देखते हुए, याचिकाकर्ता को उनकी वकील के रूप में दी गई सेवाओं पर सेवा कर से छूट प्राप्त है।”
अंतिम आदेश
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता पर लगाए गए सेवा कर और वसूली आदेश को अवैध मानते हुए दोनों आदेशों को रद्द कर दिया:
- 15 अप्रैल 2021 को जारी मांग-सह-कारण बताओ नोटिस (अनुबंध-3), और
- 28 जनवरी 2025 को जारी वसूली आदेश (अनुबंध-5),
उन हिस्सों तक, जो उनके कानूनी पेशे से अर्जित आय से संबंधित हैं।
हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि 2018–19 और 2020–21 के लिए आयकर रिटर्न में याचिकाकर्ता द्वारा घोषित मकान किराया आय की जांच कर, यदि विधि के अनुसार सेवा कर देय हो तो विभाग उसे लागू कर सकता है।
इन निर्देशों के साथ, अदालत ने याचिका का निस्तारण कर दिया और प्रैक्टिसिंग वकीलों को सेवा कर से छूट प्रदान करने वाली व्यवस्था को दोहराते हुए कर अधिकारियों को कार्रवाई में सावधानी और समन्वय बरतने का निर्देश दिया।