नई दिल्ली, 29 अप्रैल 2025 — भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना ने आज अधिवक्ता मैथ्यूज नेडुमपारा को कड़ी फटकार लगाई और कोर्ट कार्यवाही के दौरान राजनीतिक बयान देने से बचने की सलाह दी। यह टिप्पणी तब आई जब नेडुमपारा ने न्यायिक नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम प्रणाली को चुनौती देने वाली अपनी याचिका को सूचीबद्ध किए जाने का अनुरोध किया।
नेडुमपारा ने 2022 में दायर अपनी रिट याचिका का उल्लेख करते हुए कहा,
“मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने पांच बार कहा था (कि सूचीबद्ध करें)…. एनजेएसी समय की मांग है, यह आना ही चाहिए। उपराष्ट्रपति ने भी इसे कहा है और देश की जनता इसकी मांग कर रही है। माननीय न्यायाधीश ने इसे लिस्ट करने का वादा किया है।”

इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा,
“मेरे मुंह में शब्द न डालिए, बस। कृपया… कोर्ट में राजनीतिक भाषण न दें, बस।”
यह घटनाक्रम न्यायपालिका की संवेदनशील और राजनीतिक रूप से विवादास्पद मुद्दों पर सतर्कता को दर्शाता है, विशेषकर उस पृष्ठभूमि में जब सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) को असंवैधानिक घोषित करते हुए कॉलेजियम प्रणाली की प्रधानता को बरकरार रखा था।
याचिका का पृष्ठभूमि
अधिवक्ता नेडुमपारा ने 2022 में यह याचिका दायर की थी, जिसमें कॉलेजियम प्रणाली को समाप्त करने और न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका की भूमिका बढ़ाने हेतु एनजेएसी को पुनः लागू करने की मांग की गई थी। उन्होंने कॉलेजियम प्रणाली पर पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी का आरोप लगाया।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने यह याचिका स्वीकार करने से इंकार कर दिया था। रजिस्ट्री ने उल्लेख किया कि इस मुद्दे को पहले ही संविधान पीठ द्वारा 2015 के निर्णय में अंतिम रूप से निपटा दिया गया है और नेडुमपारा की याचिका मूलतः उस निर्णय की पुनरावलोकन याचिका के समान है, जिसे अनुच्छेद 32 के तहत दायर एक नई रिट याचिका के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट नियमावली, 2013 के आदेश XV नियम 5 के तहत, रजिस्ट्री ने कहा:
“रजिस्ट्रार इस आधार पर याचिका स्वीकार करने से इनकार कर सकता है कि यह कोई उचित कारण नहीं दिखाती है या यह तुच्छ या अपमानजनक सामग्री वाली है, लेकिन याचिकाकर्ता ऐसे आदेश के बनने के पंद्रह दिनों के भीतर मोशन द्वारा कोर्ट में अपील कर सकता है।”
रजिस्ट्री द्वारा अस्वीकार किए जाने के बावजूद, नेडुमपारा ने अपनी याचिका को सूचीबद्ध कराने के प्रयास जारी रखे, जो आज की इस अदालती टिप्पणी का कारण बना।
संदर्भ: कॉलेजियम बनाम एनजेएसी विवाद
संसद द्वारा 2014 में पारित और अधिकांश राज्यों द्वारा अनुमोदित एनजेएसी अधिनियम ने न्यायिक नियुक्तियों के लिए एक आयोग गठित करने का प्रस्ताव दिया था, जिसमें न्यायपालिका, कार्यपालिका और प्रतिष्ठित व्यक्तियों के प्रतिनिधि शामिल होते।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने Supreme Court Advocates-on-Record Association बनाम भारत संघ (2015) में इस अधिनियम को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि इससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर आंच आती है।
तब से लेकर अब तक, न्यायिक नियुक्ति प्रणाली में सुधार को लेकर बहस समय-समय पर उठती रही है, जो कई बार राजनीतिक और कानूनी विवादों को जन्म देती है।