छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हरिप्रसाद देवांगन के अपहरण और हत्या के मामले में आरोपी आकाश कोसरे और संजू वैष्णव की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा है, भले ही मृतक का शव बरामद नहीं हुआ हो। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार वर्मा की खंडपीठ ने सत्र प्रकरण क्रमांक 87/2019 में चतुर्थ अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, दुर्ग द्वारा 24.02.2021 को पारित निर्णय के विरुद्ध दायर आपराधिक अपील (धारा 374(2) सीआरपीसी के तहत) को खारिज कर दिया।
मामला संक्षेप में:
यह मामला मृतक के पुत्र आनंद देवांगन द्वारा 18 जनवरी 2019 को नेवई थाना में अपने पिता के लापता होने की रिपोर्ट दर्ज कराने से शुरू हुआ। जांच के दौरान आरोपियों की गिरफ्तारी हुई, जिन्होंने पूछताछ में हरिप्रसाद देवांगन का अपहरण कर उसकी हत्या करने और फिर खोरपा गांव के पास खेत में भूसे से उसका शव जलाने की बात स्वीकार की।
अभियोजन पक्ष का मामला व साक्ष्य:
अभियोजन ने अपना पूरा मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित किया। आरोपियों के कथन के आधार पर घटनास्थल से मृतक से संबंधित वस्तुएं—जैसे जली हुई हड्डियां, टिफिन बॉक्स, आभूषण और व्यक्तिगत सामान—बरामद किए गए। इन अवशेषों की फॉरेंसिक और डीएनए जांच करवाई गई। यद्यपि डीएनए प्रोफाइल स्पष्ट रूप से नहीं मिल सका, फॉरेंसिक विशेषज्ञ ने गवाही दी कि बरामद हड्डियां मानव की थीं और लगभग 60 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्ति की थीं, जो मृतक की उम्र के अनुकूल थीं।
अभियोजन पक्ष ने 20 गवाहों की गवाही कराई, जिनमें जांच अधिकारी अमित कुमार बेरिया (PW-19), फॉरेंसिक विशेषज्ञ डॉ. स्निग्धा जैन (PW-16) और अनुपमा मेश्र्राम (PW-15) शामिल थे, जिन्होंने घटनाक्रम की कड़ी को अभियुक्तों के अपराध की ओर इंगित करने हेतु प्रस्तुत किया।
अभियुक्तों की दलीलें:
अभियुक्तों के वकीलों ने तर्क दिया कि दोषसिद्धि प्रत्यक्ष साक्ष्य या चश्मदीद गवाहों के अभाव में टिकाऊ नहीं है, और मृतक की पहचान भी प्रमाणिक रूप से स्थापित नहीं हो सकी। उन्होंने यह भी कहा कि जब्ती की गई वस्तुएं सार्वजनिक स्थानों से प्राप्त हुईं, जहां किसी का भी पहुंचना संभव था, और इन वस्तुओं या अपराध में प्रयुक्त वाहन की विधिसम्मत पहचान नहीं कराई गई।
न्यायालय का विश्लेषण:
कोर्ट ने परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित दोषसिद्धि के सिद्धांतों को स्पष्ट करते हुए Sharad Birdhichand Sarda v. State of Maharashtra, (1984) 4 SCC 116 और Padala Veera Reddy v. State of A.P., AIR 1990 SC 79 जैसे निर्णयों का उल्लेख किया। न्यायालय ने कहा:
“साक्ष्यों की एक ऐसी श्रृंखला होनी चाहिए जो अभियुक्त की निर्दोषता के किसी भी संभावित निष्कर्ष की गुंजाइश न छोड़े और यह दिखाए कि सभी मानव संभावनाओं में यह कृत्य अभियुक्तों द्वारा ही किया गया है।”
कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि मृतक के परिजनों द्वारा पहचानी गई अंगूठियों और अन्य वस्तुओं की पहचान विश्वसनीय थी। डीएनए की पुष्टि न होने के बावजूद साक्ष्यों की पूरी श्रृंखला अभियुक्तों की संलिप्तता की पुष्टि करती है।
Raghav Prapanna Tripathi v. State of U.P. और Daily Administration v. Tribhuvan Nath के आधार पर पीठ ने कहा:
“अनेक मामलों में ‘कॉर्पस डेलिक्टी’ (मृत शरीर) स्थापित करना कठिन होता है। यदि हर मामले में शव की बरामदगी पर जोर दिया जाएगा तो आरोपी हत्या के बाद शव को नष्ट करने का हर संभव प्रयास करेगा और सजा से पूरी तरह बच सकता है।”
निष्कर्ष:
अदालत ने यह पाया कि अभियोजन पक्ष अपहरण, डकैती और हत्या की घटनाओं की एक ऐसी सुसंगत श्रृंखला प्रस्तुत करने में सफल रहा, जिससे यह साबित होता है कि अभियुक्त ही इस अपराध में दोषी हैं। अतः अपील खारिज कर दी गई और निचली अदालत द्वारा धारा 302/34 आईपीसी के तहत सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा गया।
संदर्भ:
Akash Kosare & Sanju Vaishnav v. State of Chhattisgarh, CRA No. 335 of 2021