मुस्लिम महिला अधिनियम केवल तत्काल तीन तलाक पर लागू होता है, ‘तलाक-ए-अहसन’ पर नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने स्पष्ट किया है कि मुस्लिम महिला (विवाह के अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 केवल तलाक-ए-बिद्दत (तत्काल और अपरिवर्तनीय तीन तलाक) पर लागू होता है, जबकि तलाक-ए-अहसन, जो मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत मान्य और वैध तलाक की विधि है, इस अधिनियम के दायरे में नहीं आता। इसी आधार पर कोर्ट ने एक मुस्लिम पुरुष और उसके माता-पिता के खिलाफ इस अधिनियम की धारा 4 के तहत दर्ज एफआईआर और आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया।

यह फैसला क्रिमिनल अप्लिकेशन संख्या 2559 ऑफ 2024 में आया, जो तनवीर अहमद और उनके माता-पिता द्वारा दाखिल की गई थी। उन्होंने भुसावल बाजार पेठ पुलिस स्टेशन, जिला जलगांव में एफआईआर संख्या 124 ऑफ 2024 और न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी, भुसावल के समक्ष लंबित नियमित आपराधिक मामला संख्या 1156 ऑफ 2024 को रद्द करने की याचिका दायर की थी। एफआईआर में मुस्लिम महिला अधिनियम की धारा 4 और भारतीय दंड संहिता की धारा 34 के तहत अपराध का आरोप लगाया गया था।

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कोर्ट की टिप्पणियाँ और कानूनी विवेचना

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न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी और न्यायमूर्ति संजय ए. देशमुख की खंडपीठ ने पाया कि तनवीर अहमद ने तलाक-ए-अहसन के माध्यम से तलाक दिया था, जिसमें एक बार तलाक उच्चारित करने के बाद 90 दिनों की इद्दत अवधि रखी जाती है। अदालत ने कहा कि यह तरीका 2019 के अधिनियम के अंतर्गत अपराध की श्रेणी में नहीं आता।

कोर्ट ने मुस्लिम महिला अधिनियम की धारा 2(ग) का उल्लेख करते हुए कहा:

“इस अधिनियम में ‘तलाक’ का आशय तलाक-ए-बिद्दत या ऐसा कोई और रूप है, जो तत्काल और अपरिवर्तनीय तलाक देता है। अन्य प्रकार के तलाक न तो रोके गए हैं और न ही निषिद्ध हैं। शायरा बानो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में जो असंवैधानिक घोषित किया गया था, वह तलाक-ए-बिद्दत था, न कि तलाक-ए-अहसन।”

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के Zohara Khatoon बनाम मोहम्मद इब्राहिम (1981) के फैसले और बॉम्बे हाईकोर्ट की समकक्ष पीठ के Shaikh Taslim Shaikh Hakim बनाम महाराष्ट्र राज्य (2022) के निर्णय का हवाला दिया, जिनमें तलाक-ए-अहसन को वैध और मान्य तलाक की विधि के रूप में स्वीकार किया गया था।

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इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के Jahfer Sadiq E.A. बनाम Marwa व अन्य (2022) के निर्णय का भी उल्लेख किया, जिसमें तलाक-ए-अहसन और तलाक-ए-हसन को संविधान सम्मत माना गया।

प्रक्रियात्मक दुरुपयोग पर टिप्पणी

कोर्ट ने कहा कि एफआईआर में न तो धारा 498-ए आईपीसी और न ही किसी अन्य दंडात्मक प्रावधान के तहत कोई आरोप है, बल्कि यह पूरी तरह तलाक-ए-अहसन के उच्चारण पर आधारित थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता के माता-पिता को आरोपी बनाना अनुचित था क्योंकि अधिनियम की धारा 4 केवल मुस्लिम पति पर लागू होती है। कोर्ट ने कहा:

“तलाक के उच्चारण की कोई सामूहिक मंशा नहीं हो सकती। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि यदि इस अधिनियम की धारा 4 के अंतर्गत ससुर और सास के विरुद्ध कार्यवाही चलाई जाती है, तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।”

अंतिम आदेश

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कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकालते हुए कि कार्यवाही जारी रखना कानून के दुरुपयोग के समान होगा, याचिका स्वीकार कर ली और निम्नलिखित आदेश पारित किया:

“भुसावल बाजार पेठ पुलिस स्टेशन, जिला जलगांव में दिनांक 15.04.2024 को दर्ज अपराध क्रमांक 124 ऑफ 2024 तथा नियमित आपराधिक मामला संख्या 1156 ऑफ 2024… वर्तमान याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध निरस्त और समाप्त किया जाता है।”

मामला: Tanveer Ahmed and Ors. v. State of Maharashtra, क्रिमिनल अप्लिकेशन नंबर 2559 ऑफ 2024

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