सुप्रीम कोर्ट ने भारी-भरकम SLPs और कानूनी तर्कों से भरे सिनॉप्सिस पर जताई गहरी नाराजगी

सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में Wikimedia Foundation Inc. बनाम ANI Media Private Limited एवं अन्य से संबंधित सिविल अपील संख्या 5455/2025 (SLP (C) संख्या 10637/2025 से उत्पन्न) की सुनवाई के दौरान अधिवक्ताओं द्वारा अत्यधिक भारी-भरकम विशेष अनुमति याचिकाएं (SLPs) दायर करने की प्रवृत्ति पर गंभीर चिंता व्यक्त की है।

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने कहा:

“हम सुप्रीम कोर्ट बार में भारी और लंबी सिनॉप्सिस दायर करने की बढ़ती प्रवृत्ति देख रहे हैं। हैरानी की बात है कि कई मामलों में सिनॉप्सिस में ही चुनौती के आधार शामिल कर दिए जाते हैं। विभिन्न निर्णयों को उद्धृत कर कानून की दलीलें सिनॉप्सिस में दी जाती हैं।”

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न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि कई SLPs में ऐसे दस्तावेज संलग्न किए जा रहे हैं जो मामले के निपटारे के लिए आवश्यक नहीं हैं। पीठ ने कहा:

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“ऐसी प्रवृत्ति बन गई है कि अत्यधिक भारी-भरकम SLPs दाखिल की जा रही हैं जिनमें अनावश्यक दस्तावेज संलग्न किए जाते हैं। हम इस प्रवृत्ति की निंदा करते हैं।”

अदालत ने अधिवक्ताओं को यह स्मरण कराया कि:

“बार के कई सदस्यों ने यह मूल सिद्धांत भुला दिया है कि कानून को याचिका में नहीं दलील के स्तर पर प्रस्तुत किया जाना चाहिए। बावजूद इसके, SLPs और प्रतिजवाब हलफनामों में कई-कई अनुच्छेदों में रिपोर्टेड निर्णय उद्धृत किए जा रहे हैं।”

पीठ ने चेताया कि ऐसी विस्तृत और भारी-भरकम याचिकाओं से मामले की मेरिट बेहतर नहीं होती:

“बार के सदस्यों को याद रखना चाहिए कि भारी-भरकम याचिकाएं दाखिल करके कोई भी व्यक्ति अपने मामले की मेरिट नहीं बढ़ा सकता।”

यह टिप्पणियां उस अपील की सुनवाई के दौरान की गईं, जिसमें दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा ANI मीडिया प्रा. लि. के पक्ष में पारित अंतरिम स्थगन आदेश को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का अंतरिम राहत संबंधी आदेश (अनुच्छेद 33(i)) “बहुत व्यापक रूप से शब्दांकित है” और “स्पष्ट रूप से क्रियान्वित नहीं किया जा सकता”, क्योंकि यह स्पष्ट नहीं था कि यह कौन तय करेगा कि कौन-सा कंटेंट झूठा, भ्रामक या मानहानिपूर्ण है। अनुच्छेद 33(iii) को भी स्थगित कर दिया गया।

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ANI Media Pvt. Ltd. की ओर से पेश वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों को देखते हुए वे 2 अप्रैल और 8 अप्रैल, 2025 के आदेशों को निरस्त करने का विरोध नहीं करेंगे, बशर्ते उन्हें विशेष कंटेंट और उसके पुनर्प्रकाशन से संबंधित निषेधाज्ञा की मांग करने की स्वतंत्रता दी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रार्थना को स्वीकार करते हुए विवादित आदेशों को रद्द कर दिया और उत्तरदाताओं को दिल्ली हाईकोर्ट के एकल पीठ के समक्ष नई अर्जी दाखिल करने की स्वतंत्रता दी।

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न्यायालय ने निर्देश दिया:

“यदि ऐसी कोई अर्जी दी जाती है, तो उसे स्वतंत्र रूप से उसके गुण-दोषों के आधार पर निपटाया जाएगा, और इस न्यायालय की किसी भी टिप्पणी से प्रभावित नहीं माना जाएगा।”

सभी विधिक मुद्दे हाईकोर्ट के समक्ष विचार हेतु खुले छोड़े गए। अपील स्वीकार कर ली गई और आदेश की प्रति सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन के सचिव को भेजने का निर्देश दिया गया।

प्रस्तावना:
Wikimedia Foundation Inc. बनाम ANI Media Private Limited एवं अन्य,
सिविल अपील संख्या 5455/2025 (SLP (C) संख्या 10637/2025 से उत्पन्न)

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