दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को स्वीडन में बसे भारतीय मूल के अकादमिक अशोक स्वैन की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने अपने ट्वीट्स पर एकल पीठ द्वारा की गई टिप्पणियों को रिकॉर्ड से हटाने की मांग की थी। यह मामला स्वैन की ओवरसीज सिटिजनशिप ऑफ इंडिया (OCI) कार्ड की रद्दीकरण को लेकर दायर याचिका से जुड़ा है।
मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने 28 मार्च को दिए गए उस फैसले की समीक्षा की, जिसमें सरकार द्वारा स्वैन का OCI कार्ड रद्द करने का आदेश तो निरस्त कर दिया गया था, लेकिन उनके कुछ ट्वीट्स को भारत की संवैधानिक व्यवस्था और राज्य की वैधता को कमजोर करने वाला बताया गया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ये टिप्पणियां केवल प्राथमिक राय थीं, न कि किसी अंतिम निर्णय का हिस्सा।
स्वैन ने इन टिप्पणियों को रिकॉर्ड से हटवाने के लिए अपील दायर की थी ताकि उनके नाम से जुड़े आपत्तिजनक कथनों को हटाया जा सके, लेकिन अंततः यह अपील खारिज कर दी गई और उनके वकील ने इसे वापस ले लिया। कोर्ट ने कहा, “अपील वापस ली गई समझी जाती है और खारिज की जाती है।”

यह विवाद 30 जुलाई 2023 को शुरू हुआ जब केंद्र सरकार ने ‘भारत-विरोधी गतिविधियों’ का हवाला देते हुए स्वैन का OCI कार्ड रद्द कर दिया था। सरकार का दावा था कि स्वैन ने भारतीय सेना और कानून व्यवस्था से संबंधित कई अपमानजनक टिप्पणियां की थीं। हालांकि, मार्च में एकल पीठ ने केंद्र सरकार के आदेश में ठोस आधार और पर्याप्त कारणों की कमी पाई थी और एक उचित कारण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।
स्वैन ने तर्क दिया कि सरकार की नीतियों पर की गई उनकी अकादमिक आलोचनाओं को राष्ट्र-विरोधी या भड़काऊ नहीं माना जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने जुलाई 2023 में भी सरकार की अस्पष्ट कार्यवाही पर नाराजगी जताई थी और नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत तीन सप्ताह के भीतर विस्तृत स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया था।