भारत में स्नातकोत्तर विधि शिक्षा से जुड़े एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में, बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने एक उच्चस्तरीय समिति के गठन का निर्णय लिया है, जिसकी अध्यक्षता भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश करेंगे। यह समिति एक वर्षीय और दो वर्षीय LL.M. डिग्रियों की समतुल्यता (equivalency) के लिए एक समग्र ढांचा तैयार करने की सिफारिश करेगी।
यह निर्णय 22 अप्रैल 2025 को BCI द्वारा आयोजित एक संयुक्त परामर्श बैठक के बाद लिया गया। इस बैठक की अध्यक्षता हिदायतुल्ला नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के कुलपति और नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज के संघ (Consortium of NLUs) के अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ.) वी.सी. विवेकानंदन ने की। बैठक में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों (NLUs), केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों, निजी विधि शिक्षण संस्थानों और संबद्ध कॉलेजों के कुलपतियों, डीनों और वरिष्ठ संकाय सदस्यों ने भाग लिया।
यह समिति सुप्रीम कोर्ट द्वारा 11 फरवरी 2025 को दिए गए निर्देशों के परिप्रेक्ष्य में गठित की जा रही है। शीर्ष अदालत ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया की विधि शिक्षा नियमावली, 2020 में कुछ प्रावधानों पर चिंता व्यक्त की थी—विशेष रूप से एक वर्षीय LL.M. डिग्री धारकों के लिए एक वर्ष की शिक्षण-अनुभव की अनिवार्यता को लेकर, ताकि उनकी डिग्रियों को भारत में शैक्षणिक पदों के लिए मान्यता मिल सके।
BCI की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, समिति का कार्यक्षेत्र निम्नलिखित बिंदुओं को समाहित करेगा:
- एक वर्षीय और दो वर्षीय LL.M. डिग्रियों के बीच समतुल्यता हेतु रूपरेखा तैयार करना।
- उपयुक्त शिक्षण प्रशिक्षण (pedagogical training) संरचनाएं तैयार करना।
- विभिन्न संस्थानों में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में समरूपता लाना।
- न्यूनतम शैक्षणिक और शिक्षण मानकों के अनुपालन की निगरानी हेतु तंत्र स्थापित करना।
समिति में पूर्व मुख्य न्यायाधीश अध्यक्ष होंगे, जबकि एक प्रतिष्ठित शिक्षाविद् को सह-संयोजक नियुक्त किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, समिति में राष्ट्रीय और निजी विधि विश्वविद्यालयों सहित विभिन्न विधि शिक्षण संस्थानों के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।
22 अप्रैल की बैठक में कई NLUs ने एक वर्षीय LL.M. कार्यक्रम को बनाए रखने का समर्थन किया, लेकिन इसके शैक्षणिक स्तर और गहराई को बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया। कुछ प्रतिभागियों ने सुझाव दिया कि एक वर्षीय पाठ्यक्रम में ही शिक्षण प्रशिक्षण को समाहित किया जाना चाहिए, जबकि अन्य ने आशंका जताई कि इससे पाठ्यक्रम अव्यवहारिक हो सकता है और छात्र पारंपरिक दो वर्षीय LL.M. को प्राथमिकता देने लगेंगे।
यह मुद्दा अभी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है। शीर्ष अदालत BCI की विधि शिक्षा नियमावली, 2020 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इन नियमों में यह प्रावधान भी शामिल है कि विदेशी विश्वविद्यालयों से प्राप्त एक वर्षीय LL.M. डिग्रियों को भारत में मान्यता तभी मिलेगी जब डिग्री धारक भारत में एक वर्ष तक विज़िटिंग या क्लिनिकल फैकल्टी के रूप में पढ़ा चुके हों।
मार्च 2021 की एक सुनवाई के दौरान BCI ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया था कि वह उस शैक्षणिक वर्ष में Bar Council of Legal Education (Post Graduate, Doctoral, Executive, Vocational, Clinical and other Continuing Education) Rules, 2020 के तहत एक वर्षीय LL.M. कार्यक्रम को समाप्त नहीं करेगा। हालांकि, बाद की अधिसूचनाओं में एक वर्षीय डिग्रियों को मान्यता के लिए अनिवार्य शिक्षण-अनुभव की शर्त जोड़ दी गई, जिससे यह विवाद दोबारा शुरू हो गया।
वर्तमान में BCI का यह कहना है कि एक वर्षीय LL.M. डिग्रियों को तभी दो वर्षीय डिग्रियों के समकक्ष माना जाएगा, जब अभ्यर्थी ने छह माह का शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा किया हो। वहीं, एसोसिएट प्रोफेसर या प्रोफेसर जैसे उच्चतर शैक्षणिक पदों के लिए—यहां तक कि पीएचडी धारकों के लिए भी—अतिरिक्त छह माह के प्रशिक्षण की अनुशंसा की गई है।