बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार और बृहन्मुंबई महानगरपालिका (BMC) को आड़े हाथों लेते हुए सवाल उठाया है कि क्या राज्य सरकार कानून का पालन करने वाले नागरिकों को प्रोत्साहित करना चाहती है या कानून तोड़ने वालों को। यह तीखी टिप्पणी अंधेरी में एक अवैध निर्माण को लेकर BMC की निष्क्रियता पर की गई, जिस पर 2021 से कई शिकायतें दर्ज की गई थीं।
न्यायमूर्ति ए.एस. गडकरी और न्यायमूर्ति कमल खाता की खंडपीठ ने BMC की निष्क्रियता पर नाराज़गी जताते हुए अवैध निर्माण को दो सप्ताह के भीतर ध्वस्त करने का निर्देश दिया और साथ ही जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ सख्त अनुशासनात्मक कार्रवाई करने को कहा।
कोर्ट ने यह भी कहा कि बड़े खाली भूखंडों पर अवैध निर्माण धीरे-धीरे झुग्गियों या वाणिज्यिक क्षेत्रों का रूप ले लेते हैं, जबकि छोटे भूखंडों पर व्यावसायिक प्रतिष्ठान खड़े हो जाते हैं। पीठ ने टिप्पणी की कि यह मामला विभिन्न पक्षों के बीच “अवैध सांठगांठ” को उजागर करता है।
पीठ ने कहा, “यह मामला केवल एक अवैध निर्माण को नहीं दर्शाता, बल्कि उन सभी के बीच मौजूद अस्वस्थ गठजोड़ की आम धारणा को भी सही साबित करता है।” अदालत ने BMC की 2021 से जारी चुप्पी और निष्क्रियता को लेकर भी कड़ी आपत्ति जताई।
न्यायमूर्ति गडकरी ने कहा कि ऐसे मामलों में कानून का पालन करने वाले नागरिकों को सामाजिक और मानसिक रूप से काफी नुकसान उठाना पड़ता है। उन्होंने कहा, “कानून तोड़ने वालों से निरंतर जूझते हुए न्याय की दिशा में आगे बढ़ना साहस का कार्य है।”
कोर्ट ने राज्य सरकार से तीखा सवाल करते हुए कहा कि क्या वह वास्तव में कानून का पालन करने वालों को बढ़ावा देना चाहती है या कानून तोड़ने वालों को। पीठ ने कहा, “यह सवाल सरकार को स्वयं से पूछना चाहिए। फिलहाल तो ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार बाद वालों को ही बढ़ावा दे रही है।”
अंत में, अदालत ने कहा कि राज्य को अपने कर्तव्यों के प्रति पुनर्विचार करना चाहिए और उन ‘पूर्णतः असंवेदनशील’ अधिकारियों को संवेदनशील बनाना चाहिए जिनकी उपेक्षा ने अवैध निर्माणों को फलने-फूलने दिया है।
यह मामला तब सामने आया जब असीफ फ़ज़ल खान ने अंधेरी उपनगर में अज़म खान द्वारा किए गए अवैध निर्माण को गिराने के लिए याचिका दायर की थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि यह निर्माण असामाजिक गतिविधियों का अड्डा बन गया है और स्थानीय लोगों के लिए परेशानी का कारण है। BMC ने 2024 की शुरुआत में कार्रवाई का वादा किया था, लेकिन चुनावी ड्यूटी और स्थानीय त्योहारों जैसे बहानों के चलते कार्रवाई में लगातार देरी होती रही।